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"""""रॉक स्टार """ चल रे रॉक-स्टार, ज़िंदगी को हि-ला दे, स्वैग से सजा दे, रास्ते को चम-का दे। आ-समां तेरा, उड़ जा तू बे-पर-वाह, दिल में ठसक, बन जा आग का त-माशा! हर कदम पे, धाक तू ज-मा, ना डर, ना थम, दुनिया को हं-सा। राहें कांटों भरी, या चमके जैसे ही-रा, तू बन सुल्तान, मचाए नया ज़ंजी-रा। यो यो, सुन रे, रॉक-स्टार, रुकना ना, दुनिया की बातों में, फंसना ना। तू शेर, जंगल में राज करे, आंधी आए, या बिजली सरे। बीट बना, रैप कर ज़िंद-गी, लम्हे को बना दे, चट-पटी कविता की। "खाली जेब, ना रोके ख्वाब," सुन यार, स्वैग से भर दे, सपनों का संसार! लेखक सुहेल अंसारी (सनम) @कॉपीराइट
**ज़िंदगी का रैप** चल रे बंदे, तू ज़िंदगी को चूम ले, सपनों का पीछा कर, हर रास्ता झूम ले। खुला है आसमां, तू उड़ जा बेकरार, दिल में जो आग है, वो बन जा तू शोले का दरिया। हर कदम पे लिख दे, अपनी कहानी नई, ना डर, ना झुक, बस जी ले तू भाई। राहें चाहे कांटों भरी, या फूलों की सैर, तू बन जा वो सूरमा, जो बनाए नया खेल। सपने वो नहीं, जो सोते वक़्त आएँ, सपने वो जो तुझे, रातों को जगाएँ। दिल में जो ख्वाब, उसे सच कर दिखा, हर मुश्किल को तू, बस हंस के हरा। गलियों से निकल, तू मंज़िल को ढूंढ, हर धड़कन में बस्ता, तेरा जुनून जूं। ना सुन दुनिया की, जो तुझे रोके, तू वो चिंगारी, जो आंधी में भी धोके। ज़िंदगी का रैप, तू गा ले बिंदास, हर पल को बना दे, एक नया विश्वास। चल, उड़, जी ले, तू अपने रंग में, सपनों का पीछा कर, बन जा तू सिकंदर। कभी धूप तपे, कभी बारिश बरसे, हर मौसम में तू, अपने रास्ते तरसे। खुद की तलाश में, तू खोज नया जहां, हर कदम पे बस्ता, तेरा अपना मकाम। दोस्तों का जोश, जो दे साथ हरदम, मुश्किलों में बन जाए, वो तेरा संबल। पर सुन, बंदे, तू खुद का भी सुन ले, तेरे अंदर बस्ता, वो जो तुझको चुन ले। ज़िंदगी का रैप, तू गा ले बिंदास, हर पल को बना दे, एक नया विश्वास। चल, उड़, जी ले, तू अपने रंग में, सपनों का पीछा कर, बन जा तू सिकंदर। यो, सुन ले बंदे, तू रुकना नहीं, दुनिया की बातों में, तू झुकना नहीं। हर आंधी में तू, बन जा वो तूफान, जो उड़ा दे सारे, डर के परेशान। खुद की बीट बना, तू रैप कर ज़िंदगी, हर लम्हे को बना दे, एक अनघट कविता की। स्वैग है तुझमें, तू बिंदास जी ले, हर पल को तू, अपने हिसाब से जी ले। कभी हार मिले, कभी जीत का ज़ायका, हर अनुभव में छुपा, ज़िंदगी का लायका। ना रास्ता आसान, ना मंज़िल दूर, बस दिल में रख, वो जुनून का नूर। मिट्टी से बना, पर तू है अनमोल, तेरे सपनों का, हर रंग है अनघट रोल। चल, उठ, और अपने मन को जगा, हर ख्वाब को पूरा कर बिंदास। लेखक सुहेल अंसारी (सनम) @कॉपीराइट
**ग़ज़ल: जुदाई की तड़प** तेरे बिन सूना सा हर एक मंज़र रहा, दिल में बस तेरा ही आलम बस्तर रहा। खामोशी की चादर ओढ़े रातें जागतीं, चाँद भी तन्हा, जैसे मुझ में बिखर रहा। वो मुलाकातें, वो बातें, वो हँसी के पल, अब ख्वाबों में बस धुंधला सा असर रहा। साँसों में बसी थी जो तेरी खुशबू कभी, अब आँसुओं का वो समंदर बिखर सा रहा। गलियों में तेरी याद की सैर करता हूँ, हर कदम पे दर्द का साया नुमाया सा रहा । क्या कहूँ इस जुदाई ने क्या-क्या छीना, खुद से भी मेरा वजूद अब बे-सहर रहा। तेरे बिना हर लम्हा इक सजा सा बन गया, जिंदगी का हर रंग अब जैसे ,बे रंग सा लगा l कभी नज़रों में थी तुझ से दुनिया सारी, अब आँखों में बस तेरा ही अक्स रहा। सुनहरी यादों का मेला दिल में सजता है, पर हर याद में तेरी दर्द का सैलाब बहता रहा। कहाँ गए वो वादे, वो कसमें, वो बातें, अब बस तन्हाई का सफर अकेले ही कट ता रहा। तू पास नहीं, फिर भी तू हर जगह बस्ता, दिल का हर कोना तुझ से ही तो बस्तर रहा। जुदाई की आग में जलता हूँ रात-दिन, फिर भी तुझ में ही मेरा जीना बसर रहा। कभी तो आएगा वो लम्हा मुलाकात का, जो ख्वाबों में हर पल मुझ में संवर रहा। इस दिल ने चाहा तुझ को हर साँस में बस, पर जुदाई का दर्द ही अब तक बिखर रहा।
**ग़ज़ल: जुदाई की तड़प** तेरे बिन सूना सा हर एक मंज़र रहा, दिल में बस तेरा ही आलम बस्तर रहा। खामोशी की चादर ओढ़े रातें जागतीं, चाँद भी तन्हा, जैसे मुझ में बिखर रहा। वो मुलाकातें, वो बातें, वो हँसी के पल, अब ख्वाबों में बस धुंधला सा असर रहा। साँसों में बसी थी जो तेरी खुशबू कभी, अब आँसुओं का वो समंदर बिखर सा रहा। गलियों में तेरी याद की सैर करता हूँ, हर कदम पे दर्द का साया नुमाया सा रहा । क्या कहूँ इस जुदाई ने क्या-क्या छीना, खुद से भी मेरा वजूद अब बे-सहर रहा। तेरे बिना हर लम्हा इक सजा सा बन गया, जिंदगी का हर रंग अब जैसे ,बे रंग सा लगा l कभी नज़रों में थी तुझ से दुनिया सारी, अब आँखों में बस तेरा ही अक्स रहा। सुनहरी यादों का मेला दिल में सजता है, पर हर याद में तेरी दर्द का सैलाब बहता रहा। कहाँ गए वो वादे, वो कसमें, वो बातें, अब बस तन्हाई का सफर अकेले ही कट ता रहा। तू पास नहीं, फिर भी तू हर जगह बस्ता, दिल का हर कोना तुझ से ही तो बस्तर रहा। जुदाई की आग में जलता हूँ रात-दिन, फिर भी तुझ में ही मेरा जीना बसर रहा। कभी तो आएगा वो लम्हा मुलाकात का, जो ख्वाबों में हर पल मुझ में संवर रहा। इस दिल ने चाहा तुझ को हर साँस में बस, पर जुदाई का दर्द ही अब तक बिखर रहा। सुहेल अंसारी (सनम)
"" अहसास "" वो घर जो था कभी जन्नत, अब वीरान हो गया, बच्चों का दिल मां बाप से बेगाना हो गया। जिनके लिए हर सुख बिछाया था आँगन में, वो छोड़ गए सब खंडहर समझकर इस आंगन को। कभी थी चहल-पहल, गूँजती थी हँसी, अब सूनेपन का मातम बस्ता है यहां । काँपते हाथों में अब ताकत बची नहीं, जो थामे थे बच्चों को, वो हिम्मत अब ना रही । यादें चुभती हैं, जैसे काँटों का गुलदस्ता बनकर, बच्चों की यादों का बस सैलाब सा रहा। क्या गलती थी, जो सजा ऐसी मिली हमें, जुर्म क्या किया हमने ,पता तो चलता हमें सजा दी हमे, हमारे जिस्म के हिस्सों ने अहसास रहेगा जिंदगी भर हमें। सर्द रातों में ठिठुरते हैं उनकी यादों मै, कभी जो छाँव थी, वो आसरा खो गया। दुनिया की आंखों ने देखा, मगर बोलें नहीं, बूढ़ों के दर्द का अब कोई मोल ना रहा। खामोशी ने घेर लिया है दिल का हर कोना कोना, अब हँसी का कोई नक्शा बाकी ना रहा। कभी सपनों में बसते थे बच्चे हमारे, वो सारे ख्वाब अब मिट्टी में मिल गए। दर-दर भटकते हैं, ढूंढती है उनको हमारी नज़रे , पर हर तरफ उनके अक्स का बुलबुला सा मिला। जिस्म थक गया, साँसें बोझ बन गई अब, जिंदगी का हर रंग अब धुंधला सा गया। काश! वो पल लौटें, जब प्यार का आंगन था ये घरौंदा । अब तो बस मायूसी का साया बस्ता है यहां । रोता है दिल आँसू थमते नहीं अब, इस मायूसी में अब जीने का सबब ना रहा। कभी तो सुन ले कोई पुकार इन साँसों की, वरना ये जिंदगी अब मिट्टी में खो जायेगी। ढूंढते रहोगे जब हम ना रहेंगे, कब्रों मै जा कर वापिस नहीं आता कोई । मिलने की उम्मीद भी अब धुंधली सी पड़ी जाती सुहेल। हर उम्मीद का दीया जैसे बुझता सा जा रहा अब। सुहेल अंसारी(सनम)
**ग़ज़ल: तुझसे मिलकर कुछ और रहा ना** तेरे चेहरे की रौशनी में, मेरा सारा जहां डूब गया, तेरी बातों के जादू से, दिल हर दफ़ा खूब गया। तेरे क़दमों की आहट सुनते ही धड़कन थम जाती है, सन्नाटा भी तुझसे मिलकर शोर बन के झूम गया। तेरी आँखों में जो देखा, वो हर सपना सच्चा लगा, तू जो हँसी एक बार तो, मौसम पूरा झूम गया। तेरे जाने की दस्तक ने दिल को जैसे तोड़ दिया, मगर तेरी यादों का सावन हर दिन मुझ पर बरस गया। तू पास नहीं फिर भी तुझसे हर रिश्ता जुड़ता जाता है, हर धड़कन पर तेरा नाम बिना कहे खुद लिपट गया। चाँद भी तुझसे शर्माए, इतनी ख़ूबसूरत तू है, तेरे ख़यालों में बैठा मैं हर रात तुझसे मिल गया। तेरा नाम लब पर आते ही दिल को सुकून मिलता है, तेरे इश्क़ में जीने वाला, हर ग़म से दूर निकल गया। वो शाम, वो बातें, वो तेरी मुस्कान नहीं भूली, जैसे एक कहानी अधूरी, पर हर दिल में बस गया। तेरी हर ख़ामोशी में इक मीठी सी सदा मिलती है, बिन कहे जो तू कह जाती है, उससे दिल बहल गया। तेरे बिना भी जी लेंगे, बस ये झूठ बोल दिया। दिल से पूछो मेरे ,ये कैसे कह दिया मैने, धड़ धड़ धधकने लगा बेसाख्ता ये दिल मेरा । सुहैल अंसारी(सनम)
**ग़ज़ल — "तेरा ज़िक्र जब भी आता है..."** तेरा ज़िक्र जब भी आता है, दिल में इक शोर सा मच जाता है। तेरी आँखों की जो रवानी है, जैसे दरिया कोई बह जाता है। मैं तो ख़ामोश रहूं फिर भी, मेरा चेहरा सब कह जाता है। रात भर जाग के तुझको सोचा, चाँद भी देख कर शरमाता है। तेरे लब की हँसी की ख़ातिर, हर ग़म दिल से बहल जाता है। तेरे एहसास की गरमी से, सर्द मौसम भी पिघल जाता है। तू जो छू ले तो लगे जैसे, हर ज़ख़्म अपना भर जाता है। तू नहीं पास तो लगता है, जैसे हर रंग मुरझाता है। तेरा आना है जैसे सावन, जो वीराने को महकाता है। तू अगर रूठ भी जाए मुझसे, दिल तुझे रोज़ मनाता है। तेरी बातों में जो नर्मी है, वो ही रूह तक उतर जाता है। प्यार तुझसे कुछ ऐसा है, जिससे हर दिन नया नाता है। सुहेल अंसारी (सनम) @copyright
**ग़ज़ल: "तेरे ख़याल में"** तेरे ख़याल में जब भी डूब जाने को दिल करे, हम अपने आप से चुपके छुपाने को दिल करे। चली थी शाम तेरी याद की लिपट के मुझे, उसी तरह तुझे फिर से बुलाने को दिल करे। तेरी निगाह में जो लम्हे ठहर गए थे कभी, उन्हीं फ़िज़ाओं में ख़्वाब सजाने को दिल करे। तू पास हो के भी कुछ दूर-दूर सा क्यूँ लगे, तेरे बदन को फिर से छू जाने को दिल करे। तेरे बिना जो उदासी है मेरे लब पे ठहर, उसे तिरी हँसी से मिटाने को दिल करे। जो तेरा नाम लबों पे आए ख़ुद-ब-ख़ुद, हर एक साँस तुझमें समाने को दिल करे। तेरे सिवा न कोई सिलसिला चले अब तो, हर दुआ में तुझे ही माँगने को दिल करे। तेरी गली में सजे चाँद जैसे ख़्वाब कई, हर एक पल वहीं लौट जाने को दिल करे। तू जो मिले तो ये मौसम भी गा उठे शायद, तेरी हथेली पे अपना नाम लिखाने को दिल करे। छुपा रखे हैं जो जज़्बात आँखों की तह में, तेरे सामने सब कह जाने को दिल करे। सुहेल अंसारी (सनम) @copyright
BHAGWAN JI KA TAX आओ भाई तुमको सुनाए सच्चाई इस दुनिया की अपनी तो औकात नहीं तुम्हारी हमको पता नहीं भगवान को कोसते हो दिन रात सांसों पर गर टैक्स होता तो क्या होता तो पड़ा बिस्तर पे होता कोई पड़ा ऑफिस मै कोई पड़ा सड़क पे होता कोई गंदे नाले मै होता ची ची कर के चिल्लाते रिचार्ज करो जल्दी से फट गई मेरी आँखें भगवान अब माफ तू कर दे अब माफ तू कर दे ना बोलूंगा उल्टा सीधा बोलूंगा ना उल्टा सीधा अब माफ तू कर दे बस एक बार बस एक बार भगवान जी भी मान गए भगवान जी भी मान गए पर बंदे उसके चालू है चालू है उस के बंदे फिर से की बदमाशी बदमाशी की फिर से भगवान जी को गुस्सा आया और बोला सूरज को सूरज को बोला अब से तेरी हो गई छुट्टी संडे मै अब तू मना अपनी छुट्टी होना क्या था चारों ओर अंधेरा मर गए मर गए मर गए मर गए मर गए मर गए बस अब की बार बचा ले बचा ले बस अब की बार मानूंगा तेरी हर बात बस अब की बार बचा ले गर पानी पे होता टैक्स तो क्या होता तो क्या होता नदी नाले सब सुख गए सूख गए सब नदी नाले पानी पानी पानी पानी पानी सब चिल्लाए बोले अब भगवान जी के दूत और करो पानी को वेस्ट नहीं सुनी जाएगी कोई बात भाड़ में जाओ तुम सब लोग गुस्सा है भगवान जी भगवान जी है गुस्सा पर बंदे है बहुत चालू फिर वही रोना धोना फिर वही रोना धोना मै भी मानू, तुम भी मानो बात ऊपर वाले की वरना वो हो जाएगा जो सोचा नहीं ख्यालों मै जो सोचा नहीं ख्यालों मै । लेखक सुहेल अंसारी (सनम) @कॉपीराइट
(तेरी मेरी कहानी) तेरे पास जो लगता हूँ मैं, खुद से भी कुछ सस्ता हूँ मैं। तेरी साँसों की रौशनी में, हर पल जैसे चमकता हूँ मैं। **तेरी ख़ुशबू से भीग जाऊँ, तेरे लहजे में जी जाऊँ, तू जो कह दे एक बार बस, उसी बात में ठहर जाऊँ।** तेरे बिना जो दिन कटे, वो मौसम जैसे सूखे थे। तेरी हँसी की लौ में अब, सब अंधेरे झूठे थे। तू है तो मैं हूँ, तू ना हो तो, सांसें भी बस कागज़ सी। तेरे नाम की धड़कन में ही, ज़िन्दगी मेरी बाज़ी सी। तेरे होंठों पे चुप सी क्यों है, कुछ कहती है, कुछ डरती है। मैं पढ़ लूँ तुझको खामोशी से, तेरी आँखें सब कहती हैं। **चल कहीं दूर चलें हम दोनों, जहाँ शब्दों की ज़रूरत ना हो। सिर्फ़ दिल बोले, और प्यार बहे, कोई दुनिया, कोई फ़ज़ा ना हो।** तेरे बिना जो दिन कटे, वो मौसम जैसे सूखे थे। तेरी हँसी की लौ में अब, सब अंधेरे झूठे थे। बस तू रहे पास यूँ ही सदा, हर साँझ-सहर तेरा नाम लिखूँ। अगर मोहब्बत हो कोई साज, तो हर सुर में मैं तुझे ही दिखूँ। लेखक सुहेल अंसारी (सनम) @copyright
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