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WRITER WITH LERNER
उसकी गुलाबी साडी में सुनहरी जरी लगती है। गुलाबी साडी में वो परी सी लगती है॥ स्वर्ग से आई अप्सरा है वो। प्रकृति ने सजाया वसुंधरा लगती है॥ ऊंचे आसमान से उतरी दामिनी है वो। गहरे राग से उभरी रागिनी है वो॥ तेज है थोडी मिर्ची सी लगती है। चंचल है थोडी तितली सी लगती है॥ दो धारी तलवार है वो। चावुक सी पडती मार है वो॥ दूर होकर भी पास लगती है। मुरझाये दिल मे प्यार का एहसास लगती है॥ हर कर्म सफल हो जाये रोहिणी है वो। जिसे देखते ही प्रेम हो जाये मनमोहिनी है वो॥ सावन में ठंडी फुहार सी लगती है। जब भी देखूं उपहार सी लगती है॥ उसकी गुलाबी साडी में सुनहरी जरी लगती है। गुलाबी साडी में वो परी सी लगती है॥
स्त्री प्रेम की आशा में देह सौंपती है। पुरुष देह के लोभ में प्रेम करता है।।
लगाकर आग दौलत में, ये हमने शौक़ पाले हैं। कोई पूछे तो कह देना, की हम महाकाल वाले हैं।।
कभी फुर्सत मिले तो घुमाना, रहती सांसों तक न बदलूंगा, मेरा नंबर याद तो होगा तुझे। सच कहने पर सारी गलतियां माफ़ होंगी तेरी, मेरा वादा याद तो होगा तुझे।। #U .V.RUDRA
मैंने आसमां भर के सितारे देखें है दुःख का दरिया और उसके किनारे देखें है तुम्हारे जैसा कोई प्यार नहीं करता मैंने जहां भर के लोग सारे देखें है love u mamma
जलते घर को देखने वालों फूस का छप्पर आपका है आपके पीछे तेज़ हवा है आगे मुकद्दर आपका है उस के क़त्ल पे मैं भी चुप था मेरा नम्बर अब आया मेरे क़त्ल पे आप भी चुप है अगला नम्बर आपका है ॥✍🏻
नारी प्रीत में राधा बने, गृहस्ती में बने जानकी। काली बनके शीश काटे, जब बात हो सम्मान की।।
विना लिबास आए थे इस जहां में। बस एक कफन की खातिर इतना सफर करना पड़ा।।
लड़के ! हमेशा खड़े रहे. खड़े रहना उनकी मजबूरी नहीं रही बस ! उन्हें कहा गया हर बार, चलो तुम तो लड़के हो खड़े हो जाओ. छोटी-छोटी बातों पर वे खड़े रहे ,बस में ,ट्रेन में,कक्षा के बाहर.. स्कूल विदाई पर जब ली गई ग्रुप फोटो,लड़कियाँ हमेशा आगे बैठीं,और लड़के बगल में हाथ दिए पीछे खड़े रहे. वे तस्वीरों में आज तक खड़े हैं.. कॉलेज के बाहर खड़े होकर, करते रहे किसी लड़की का इंतज़ार, या किसी घर के बाहर घंटों खड़े रहे, एक झलक,एक हाँ के लिए. अपने आपको आधा छोड़ वे आज भी वहीं रह गए हैं... बहन-बेटी की शादी में खड़े रहे, मंडप के बाहर बारात का स्वागत करने के लिए. खड़े रहे रात भर हलवाई के पास,कभी भाजी में कोई कमी ना रहे.खड़े रहे खाने की स्टाल के साथ, कोई स्वाद कहीं खत्म न हो जाए. खड़े रहे विदाई तक दरवाजे के सहारेऔर टैंट के अंतिम पाईप के उखड़ जाने तक. बेटियाँ-बहनें जब तक वापिस लौटेंगी वे खड़े ही मिलेंगे... वे खड़े रहे पत्नी को सीट पर बैठाकर,बस या ट्रेन की खिड़की थाम कर .वे खड़े रहे बहन के साथ घर के काम में, कोई भारी सामान थामकर. वे खड़े रहे माँ के ऑपरेशन के समय ओ. टी.के बाहर घंटों. वे खड़े रहे पिता की मौत पर अंतिम लकड़ी के जल जाने तक. वे खड़े रहे , अस्थियाँ बहाते हुए गंगा के बर्फ से पानी में. लड़कों ! रीढ़ तो तुम्हारी पीठ में भी है, क्या यह अकड़ती नहीं ? बेटी पर तो बहुत लिखा जाता है आज बेटों पर लिखा कहीं पढ़ा,तो मन किया सब से सांझा कर लूं।✍🏻
जिंदगी में बहुत सी अज़ीज़ जगहों से गुजर चुका हूं पर तेरे खयालों से गुजर गया तो गुजर जाउंगा मैं... -Uday Veer
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