hindi Best Short Stories Books Free And Download PDF

Stories and books have been a fundamental part of human culture since the dawn of civilization, acting as a powerful tool for communication, education, and entertainment. Whether told around a campfire, written in ancient texts, or shared through modern media, Short Stories in hindi books and stories have the unique ability to transcend time and space, connecting people across generations and cult...Read More


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हुआंग चाउ की बेटी - 8 By Sax Rohmer

नहीं, लाला ने कहा, हमारे घर में कभी चोर नहीं आये। उसने डरहम की तरफ भोलेपन से देखा। तुम चोर नहीं हो, हो क्या?
नहीं, बिलकुल नहीं हूँ, उसने जवाब दिया और अपने बालों में हाथ फिर...

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एक अपवित्र रात - 1 By MB (Official)

उलरिख वॉन जेटजीखोवन के वृत्तान्तों से ली गयी यह कहानी 13वीं सदी की है। बोधकथाओं या प्रकृत कथाओं से अलग यह प्रतीक-कथा अपने समय में एक नया आयाम उद्घाटित करती है।
जब लांसलॉट लड़का ही...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 49 By VIRENDER VEER MEHTA

'इस समय कौन आ सकता है?' डोर-बेल की आवाज पर सोचते हुए निशि ने दरवाजा खोला, सामने रवि था। वर्षों बाद पति को देख वह समझ नही सकी कि वह क्या करे? खामोशी से रास्ता देते हुए अंदर...

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एक थी सीता - 7 By MB (Official)

नैवेयर की रानी मार्गराइट का रचनाकाल सोलहवीं शताब्दी का मध्य माना गया है। अपने मित्रों के बीच कहानियाँ सुनने-सुनाने का उसे बहुत शौक था। उसके कहानी-संग्रह ‘हेप्टामेरॉन’ को ‘फ्रेंच डे...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 48 By Vijayanand Singh

आपलोग सूट में देखना चाहेंगे या साड़ी में ? लड़की के पिता ने निरीह भाव से लड़के के पिता से पूछा। वे लोग आज शगुन को देखने आए हुए थे।
शगुन ऊब गयी थी अपनी बार-बार की इस नुमाइश से।वह सो...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 47 By Sushma Gupta

तुम्हें क्या लगता है, आज वो आऐगा ?
रास्ते की तरफ खुलती खिड़की ने घर की बैठक के दरवाज़े से पूछा।
हाँ, आज वो जरूर आऐगा ।
तुम्हे इतना यकीन कैसे है?
पाँच दशक से देख रहा हूँ,...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 46 By Surinder Kaur

इलाहाबाद से रांची के लिए खुली ट्रेन तेज गति से आगे की ओर भाग रही थी। खिड़की से बाहर देख रहे पांडे जी के दिमाग का पहिया बाहरी दृश्यों के साथ- साथ पीछे की ओर जाने लगा।सीट पर साथ में...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 45 By SURENDRA ARORA

शंकर के तबादले की खबर आग की तरह सारे दफ्तर में फ़ैल गयी. शंकर, साहब की आँख की किरकिरी था. वह अकेले दम साहब के पक्षपाती, दमनकारी और गैरकानूनी कामों का विरोध करता था.

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स्वाभिमान - लघुकथा - 44 By Sunita Tyagi

काफी देर से बिस्तर पर लेटे हुए वे दोनों गहन चिंता में डूबे हुए एकटक छत की ओर ताक रहे थे ।
सुनो जी !आपकी फैक्ट्री में हड़ताल कब तक चलेगी । देखो ना तीन महीने हो गये पगार मिले हुए ।...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 43 By Shobha Rastogi

“सुनो ! तुम मुझे तुम्हारे वियोग के गहरे अहसास में अर्धचेतन-सा छोड़ गए थे। अपना जीवन स्वाहा करने की मंशा लिए मैंने जाना कि नवांकुर फूट गया है। तब से अब तक पल-पल, क्षण क्षण तुम्हे नैन...

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तमाशा By Saadat Hasan Manto

दो तीन रोज़ से तय्यारे स्याह उक़ाबों की तरह पर फुलाए ख़ामोश फ़िज़ा में मंडला रहे थे। जैसे वो किसी शिकार की जुस्तुजू में हों सुर्ख़ आंधियां वक़तन फ़वक़तन किसी आने वाली ख़ूनी हादिसे का पैग़ाम...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 42 By Seema Shivhare suman

आप यहां! अब यहां क्या लेने आए हो? पूरे दो साल हो गए अपनी जिंदगी और दिल से निकाले हुए, क्या देखने आए हो? जिंदा हूं ! या मर गई हूं! या अपनी रखेल के लिए कुछ मांगने आए हो। दो साल से मय...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 41 By सीमा जैन 'भारत'

-“शादी का लहंगा लेने के लिए ताई-ताऊ जी को साथ लेने की
क्या ज़रूरत है बेटा?”
-“माँ, हमारा बजट तो तुम जानती हो ना!”
- “सपना, तुमनें हमेशा मेरी बात को समझा है फ़िर आज किसी से उम्मीद...

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प्यार एक जींदगी का राझ By Shaimee oza Lafj

प्यार एक जिंदगी का  राझ......प्यार या नशा भी बहुत अदभुत होता है.किसी के लीए मर जाना, प्यार भी इश्वर की। तरह निर्मल पवित्र होता है कीसे कब कीसके साथ हो जाए पता न चलता .कभी प्या...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 40 By Seema Bhatia

रात के बारह बजे थे। बिस्तर के दो कोनों दूर दूर पर पड़े दोनों मन से भी निरंतर दूर होते जा रहे थे। मोहन के दम्भी स्वभाव के आगे सरल सविता बेबस हो जाती थी। जरा जरा सी बात पर नुक्स निकाल...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 39 By Savita Mishra

आज रिटायर हो गया सुगन्धा
अरे! कैसे-क्यों ? तबियत तो ठीक है न ! अभी आपकी नौकरी के तो चार महीने बाकी हैं
नहीं रे ! 'प्यार' से रिटायर हुआ हूँ
आप भी! इस बुढ़ापे...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 38 By Savita Indra Gupta

दरवाजे पर पंकज को देख, पल भर को आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। खड़ी की खड़ी रह गयी ... नि:शब्द, हतप्रभ। सात फेरों के बंधन के बावजूद, पिछले तीस वर्षों से दोनों के बीच में अबोला था। इस बीच...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 37 By Sangita Mathur

प्रोफेसर नरेन्‍द्र शर्माजी गांव बडे भाई के पास गए तो वहां उनकी पुश्‍तैनी खेती बाड़ी और दुकान जोरों से चलते देख अत्‍यंत प्रभावित हुए। वैसे तो नरेन्‍द्रजी अपना हिस्‍सा पहले ही लेकर अल...

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तक़ी कातिब By Saadat Hasan Manto

लखनऊ और वली के जाहिल और ख़ुद सर क़ातिबों से मेरा जी जला हुआ था। एक था उस को जा व बेजा पेश डालने की बुरी आदत थी। मौत को मूत और सोत को सूत बना देता था। मैंने बहुत समझाया मगर वो न समझा...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 36 By Sangeeta Gandhi

“ऑन्टी हम कल से सिर्फ बर्तन धोएंगे। रसोई का बाकी काम न करेंगे ।”
“ क्यों ,क्या दिक्कत है? तुम्हें बर्तनों के लिए 600 देते हैं। रसोई साफ करने ,सब्जी काटने के अलग से 200 देते हैं न...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 35 By Sandhya Tiwari

भइया ने माँ के पैर छुए तो माँ स्नेह विगलित स्वर में बोलीं
अच्छे रहो, सुखी रहो, तरक्की करो।
पापा के पैर छूने पर पापा ने कहा जुग जुग जियो बेटा । चिंरजीवी हो। यशस्वी हो।
त...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 34 By Ratnkumar Sambhria

भरी जवानी में विधवा हो गई रमिया को जमींदार की टहलुवई पति से विरासत में मिली। उसके लिए श्रम और भूख एक-दूसरे के पर्याय थे। दिनभर खटना नियति होने के बावजूद रमिया ने एक गुस्ताखी की। वह...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 33 By Rachana Agarwal Gupta

आज बच्चों को पढ़ाते वक़्त, अचानक अपने आप से मुलाकात हो गई।
अरे सुमन क्या हुआ, सिर्फ दस मिनट बचे हैं टेस्ट खत्म होने में, जल्दी पूरा करो
जी...जी मैम, बस यह थ्योरम नही बन रहा
म...

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डर लगता है By SURENDRA ARORA

कहानी डर लगता है " क्यूँ किया है फिर से फोन ? मजबूर...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 32 By Pranjal Shrivastav

प्राइवेट इंस्टीट्यूट में इंटरव्यू के बाद राधिका को रुकने के लिए कहा गया था। पाँच सालों की बेरोजगारी और तंगहाली ने उच्च शिक्षित राधिका के आत्मविश्वास को हिला दिया था फिर भी उसने इस...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 31 By Pradeep Mishra

‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ की तपिश को किशोरावस्था में उन्होंने बड़े करीब से महसूस किया था संगी – साथियों के साथ ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो”… ‘वन्देमातरम” के नारे लगाये थे निर्भीकता का पहला पा...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 30 By Madhu Jain

शाम होने को आई, शोभा सुबह से बिन कुछ खाये पिये ही अपने कमरे में लेटी है।
कोई भी उसके कमरे में नहीं आया। न ही आज खाने के लिए उससे पूछां, और यह जानने की कोशिश भी नहीं की कि उसकी तबि...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 29 By Madhav Nagda

जब से उसका स्थानान्तरण आदेश आया है सब मन ही मन खूब पुलकित हैं खूबीचन्द चपरासी से लेकर बड़े बाबू खेमराज तक सब कैसी होगी वह? युवा अधेड़ या वृद्ध? फैशनेबल या सीधी-सादी? दिलफेंक या ग...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 28 By डा.कुसुम जोशी

प्रवीन गुस्से से भरा बैठा था, चीखता हुआ बोला अन्तिम बार कह रहा हूं शशि ! मेरी बात तुम्हें मान लेनी चाहिये.. वरना ठीक नही होगा ।
क्या ठीक नही होगा..बचा ही क्या है अब..इस मजबूरी औ...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 27 By डॉ. कुमारसम्भव जोशी

अरे! चाय आज ही आएगी या इनको अपनी चाय खुद के घर से ही लाने का बोल दूँ.
चाय लाने में जरा सी देरी होने पर ही अजय ने अपने दोस्त मानव की उपस्थिति की परवाह किए बगैर रचना को बुरी तरह लत...

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हरिदास By Lakshmi Narayan Panna

एक बार जब खादी ग्रामोद्योग के द्वारा संचालित विभिन्न इकाइयों के मानकों का भौतिक सत्यापन करने की लिए कुछ लोगों की आवश्यक्ता थी और मुझे रोजगार की। सत्यापन का कार्य खादी विभाग ने एक...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 26 By Kapil Shastri

ऐ.सी.थ्री टायर की साइड अपर बर्थ पर उनींदी हो रही प्रभा को आभास था कि कुछ छोटे मोटे स्टेशन्स चुपके से गुजर चुके हैं और अब चाय, गरमागरम चाय, बढ़िया मसाले वाली चाय और पेपर, सुबह का...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 25 By Kanta Roy

स्कूल से आते ही उस दिन लड़का देर तक चिल्लाता रहा कि उसे पॉकेट मनी चाहिए ही चाहिए! क्योंकि उसके सभी सहपाठियों को उनके पिता पॉकेट मनी देते हैं। उसका माली पिता बड़ी मुश्किल से उसके लि...

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फरार By Prashant Vyawhare

फरार वो १९८६ का दौर था जब अंडरवर्ल्ड का बड़ा भाई, उस पावरफुल नेताजी सरकार के कहने पर दुबई भाग गया उसके बाद मुंबई के अंडरवर्ल्ड में खलबली मच गयी. हर छोटा गैंगस्टर भाई की जगह लेना च...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 24 By kanak harlalka

मां कहां हो आप, और यह क्या कर रहीं है ? आपको किस चीज की कमी है । जरा मेरी पोजीशन का भी खयाल रखना चाहिए था । मैं और आपकी बहू दोनों इतने बड़े पोस्ट पर हैं । फिर आप यह सब ..!!

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स्वाभिमान - लघुकथा - 23 By Jyoti Sharma

अरे! तू तो बीमार थी न कमली फिर क्यों आयी?
और आज तो वैसे ही करवा चौथ है। मैं ये जानती हूं कि बीमार होने पर भी तू इसे छोड़ेगी नहीं तो आज और आराम कर लेती घर पर।
'बीबीजी सच कहूँ...

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हुआंग चाउ की बेटी - 8 By Sax Rohmer

नहीं, लाला ने कहा, हमारे घर में कभी चोर नहीं आये। उसने डरहम की तरफ भोलेपन से देखा। तुम चोर नहीं हो, हो क्या?
नहीं, बिलकुल नहीं हूँ, उसने जवाब दिया और अपने बालों में हाथ फिर...

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एक अपवित्र रात - 1 By MB (Official)

उलरिख वॉन जेटजीखोवन के वृत्तान्तों से ली गयी यह कहानी 13वीं सदी की है। बोधकथाओं या प्रकृत कथाओं से अलग यह प्रतीक-कथा अपने समय में एक नया आयाम उद्घाटित करती है।
जब लांसलॉट लड़का ही...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 49 By VIRENDER VEER MEHTA

'इस समय कौन आ सकता है?' डोर-बेल की आवाज पर सोचते हुए निशि ने दरवाजा खोला, सामने रवि था। वर्षों बाद पति को देख वह समझ नही सकी कि वह क्या करे? खामोशी से रास्ता देते हुए अंदर...

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एक थी सीता - 7 By MB (Official)

नैवेयर की रानी मार्गराइट का रचनाकाल सोलहवीं शताब्दी का मध्य माना गया है। अपने मित्रों के बीच कहानियाँ सुनने-सुनाने का उसे बहुत शौक था। उसके कहानी-संग्रह ‘हेप्टामेरॉन’ को ‘फ्रेंच डे...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 48 By Vijayanand Singh

आपलोग सूट में देखना चाहेंगे या साड़ी में ? लड़की के पिता ने निरीह भाव से लड़के के पिता से पूछा। वे लोग आज शगुन को देखने आए हुए थे।
शगुन ऊब गयी थी अपनी बार-बार की इस नुमाइश से।वह सो...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 47 By Sushma Gupta

तुम्हें क्या लगता है, आज वो आऐगा ?
रास्ते की तरफ खुलती खिड़की ने घर की बैठक के दरवाज़े से पूछा।
हाँ, आज वो जरूर आऐगा ।
तुम्हे इतना यकीन कैसे है?
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स्वाभिमान - लघुकथा - 46 By Surinder Kaur

इलाहाबाद से रांची के लिए खुली ट्रेन तेज गति से आगे की ओर भाग रही थी। खिड़की से बाहर देख रहे पांडे जी के दिमाग का पहिया बाहरी दृश्यों के साथ- साथ पीछे की ओर जाने लगा।सीट पर साथ में...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 45 By SURENDRA ARORA

शंकर के तबादले की खबर आग की तरह सारे दफ्तर में फ़ैल गयी. शंकर, साहब की आँख की किरकिरी था. वह अकेले दम साहब के पक्षपाती, दमनकारी और गैरकानूनी कामों का विरोध करता था.

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स्वाभिमान - लघुकथा - 44 By Sunita Tyagi

काफी देर से बिस्तर पर लेटे हुए वे दोनों गहन चिंता में डूबे हुए एकटक छत की ओर ताक रहे थे ।
सुनो जी !आपकी फैक्ट्री में हड़ताल कब तक चलेगी । देखो ना तीन महीने हो गये पगार मिले हुए ।...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 43 By Shobha Rastogi

“सुनो ! तुम मुझे तुम्हारे वियोग के गहरे अहसास में अर्धचेतन-सा छोड़ गए थे। अपना जीवन स्वाहा करने की मंशा लिए मैंने जाना कि नवांकुर फूट गया है। तब से अब तक पल-पल, क्षण क्षण तुम्हे नैन...

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तमाशा By Saadat Hasan Manto

दो तीन रोज़ से तय्यारे स्याह उक़ाबों की तरह पर फुलाए ख़ामोश फ़िज़ा में मंडला रहे थे। जैसे वो किसी शिकार की जुस्तुजू में हों सुर्ख़ आंधियां वक़तन फ़वक़तन किसी आने वाली ख़ूनी हादिसे का पैग़ाम...

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आप यहां! अब यहां क्या लेने आए हो? पूरे दो साल हो गए अपनी जिंदगी और दिल से निकाले हुए, क्या देखने आए हो? जिंदा हूं ! या मर गई हूं! या अपनी रखेल के लिए कुछ मांगने आए हो। दो साल से मय...

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-“शादी का लहंगा लेने के लिए ताई-ताऊ जी को साथ लेने की
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- “सपना, तुमनें हमेशा मेरी बात को समझा है फ़िर आज किसी से उम्मीद...

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प्यार एक जींदगी का राझ By Shaimee oza Lafj

प्यार एक जिंदगी का  राझ......प्यार या नशा भी बहुत अदभुत होता है.किसी के लीए मर जाना, प्यार भी इश्वर की। तरह निर्मल पवित्र होता है कीसे कब कीसके साथ हो जाए पता न चलता .कभी प्या...

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आज रिटायर हो गया सुगन्धा
अरे! कैसे-क्यों ? तबियत तो ठीक है न ! अभी आपकी नौकरी के तो चार महीने बाकी हैं
नहीं रे ! 'प्यार' से रिटायर हुआ हूँ
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प्रोफेसर नरेन्‍द्र शर्माजी गांव बडे भाई के पास गए तो वहां उनकी पुश्‍तैनी खेती बाड़ी और दुकान जोरों से चलते देख अत्‍यंत प्रभावित हुए। वैसे तो नरेन्‍द्रजी अपना हिस्‍सा पहले ही लेकर अल...

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तक़ी कातिब By Saadat Hasan Manto

लखनऊ और वली के जाहिल और ख़ुद सर क़ातिबों से मेरा जी जला हुआ था। एक था उस को जा व बेजा पेश डालने की बुरी आदत थी। मौत को मूत और सोत को सूत बना देता था। मैंने बहुत समझाया मगर वो न समझा...

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“ऑन्टी हम कल से सिर्फ बर्तन धोएंगे। रसोई का बाकी काम न करेंगे ।”
“ क्यों ,क्या दिक्कत है? तुम्हें बर्तनों के लिए 600 देते हैं। रसोई साफ करने ,सब्जी काटने के अलग से 200 देते हैं न...

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भइया ने माँ के पैर छुए तो माँ स्नेह विगलित स्वर में बोलीं
अच्छे रहो, सुखी रहो, तरक्की करो।
पापा के पैर छूने पर पापा ने कहा जुग जुग जियो बेटा । चिंरजीवी हो। यशस्वी हो।
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स्वाभिमान - लघुकथा - 34 By Ratnkumar Sambhria

भरी जवानी में विधवा हो गई रमिया को जमींदार की टहलुवई पति से विरासत में मिली। उसके लिए श्रम और भूख एक-दूसरे के पर्याय थे। दिनभर खटना नियति होने के बावजूद रमिया ने एक गुस्ताखी की। वह...

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आज बच्चों को पढ़ाते वक़्त, अचानक अपने आप से मुलाकात हो गई।
अरे सुमन क्या हुआ, सिर्फ दस मिनट बचे हैं टेस्ट खत्म होने में, जल्दी पूरा करो
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डर लगता है By SURENDRA ARORA

कहानी डर लगता है " क्यूँ किया है फिर से फोन ? मजबूर...

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प्राइवेट इंस्टीट्यूट में इंटरव्यू के बाद राधिका को रुकने के लिए कहा गया था। पाँच सालों की बेरोजगारी और तंगहाली ने उच्च शिक्षित राधिका के आत्मविश्वास को हिला दिया था फिर भी उसने इस...

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‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ की तपिश को किशोरावस्था में उन्होंने बड़े करीब से महसूस किया था संगी – साथियों के साथ ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो”… ‘वन्देमातरम” के नारे लगाये थे निर्भीकता का पहला पा...

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शाम होने को आई, शोभा सुबह से बिन कुछ खाये पिये ही अपने कमरे में लेटी है।
कोई भी उसके कमरे में नहीं आया। न ही आज खाने के लिए उससे पूछां, और यह जानने की कोशिश भी नहीं की कि उसकी तबि...

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जब से उसका स्थानान्तरण आदेश आया है सब मन ही मन खूब पुलकित हैं खूबीचन्द चपरासी से लेकर बड़े बाबू खेमराज तक सब कैसी होगी वह? युवा अधेड़ या वृद्ध? फैशनेबल या सीधी-सादी? दिलफेंक या ग...

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प्रवीन गुस्से से भरा बैठा था, चीखता हुआ बोला अन्तिम बार कह रहा हूं शशि ! मेरी बात तुम्हें मान लेनी चाहिये.. वरना ठीक नही होगा ।
क्या ठीक नही होगा..बचा ही क्या है अब..इस मजबूरी औ...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 27 By डॉ. कुमारसम्भव जोशी

अरे! चाय आज ही आएगी या इनको अपनी चाय खुद के घर से ही लाने का बोल दूँ.
चाय लाने में जरा सी देरी होने पर ही अजय ने अपने दोस्त मानव की उपस्थिति की परवाह किए बगैर रचना को बुरी तरह लत...

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एक बार जब खादी ग्रामोद्योग के द्वारा संचालित विभिन्न इकाइयों के मानकों का भौतिक सत्यापन करने की लिए कुछ लोगों की आवश्यक्ता थी और मुझे रोजगार की। सत्यापन का कार्य खादी विभाग ने एक...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 26 By Kapil Shastri

ऐ.सी.थ्री टायर की साइड अपर बर्थ पर उनींदी हो रही प्रभा को आभास था कि कुछ छोटे मोटे स्टेशन्स चुपके से गुजर चुके हैं और अब चाय, गरमागरम चाय, बढ़िया मसाले वाली चाय और पेपर, सुबह का...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 25 By Kanta Roy

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फरार By Prashant Vyawhare

फरार वो १९८६ का दौर था जब अंडरवर्ल्ड का बड़ा भाई, उस पावरफुल नेताजी सरकार के कहने पर दुबई भाग गया उसके बाद मुंबई के अंडरवर्ल्ड में खलबली मच गयी. हर छोटा गैंगस्टर भाई की जगह लेना च...

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मां कहां हो आप, और यह क्या कर रहीं है ? आपको किस चीज की कमी है । जरा मेरी पोजीशन का भी खयाल रखना चाहिए था । मैं और आपकी बहू दोनों इतने बड़े पोस्ट पर हैं । फिर आप यह सब ..!!

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स्वाभिमान - लघुकथा - 23 By Jyoti Sharma

अरे! तू तो बीमार थी न कमली फिर क्यों आयी?
और आज तो वैसे ही करवा चौथ है। मैं ये जानती हूं कि बीमार होने पर भी तू इसे छोड़ेगी नहीं तो आज और आराम कर लेती घर पर।
'बीबीजी सच कहूँ...

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