hindi Best Short Stories Books Free And Download PDF

Stories and books have been a fundamental part of human culture since the dawn of civilization, acting as a powerful tool for communication, education, and entertainment. Whether told around a campfire, written in ancient texts, or shared through modern media, Short Stories in hindi books and stories have the unique ability to transcend time and space, connecting people across generations and cult...Read More


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स्वाभिमान - लघुकथा - 24 By kanak harlalka

मां कहां हो आप, और यह क्या कर रहीं है ? आपको किस चीज की कमी है । जरा मेरी पोजीशन का भी खयाल रखना चाहिए था । मैं और आपकी बहू दोनों इतने बड़े पोस्ट पर हैं । फिर आप यह सब ..!!

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स्वाभिमान - लघुकथा - 23 By Jyoti Sharma

अरे! तू तो बीमार थी न कमली फिर क्यों आयी?
और आज तो वैसे ही करवा चौथ है। मैं ये जानती हूं कि बीमार होने पर भी तू इसे छोड़ेगी नहीं तो आज और आराम कर लेती घर पर।
'बीबीजी सच कहूँ...

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कार्तिकेय और गणेश By Arpan Kumar

गाँव से आई एक स्वाभिमानी नानी से दूर रहने वाले दो बच्चों के अंततः पश्चाताप में निखरकर बाहर आने की कहानी।यह कहानी बद्‌ए होते बच्चों में इमेज़-कांशसनेस की प्रवृत्ति को दिखलाती है।

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डॉक्टर शरोडकर By Saadat Hasan Manto

बंबई में डाक्टर शरोड कर का बहुत नाम था। इस लिए कि औरतों के अमराज़ का बेहतरीन मुआलिज था। उस के हाथ में शिफ़ा थी। उस का शिफ़ाख़ाना बहुत बड़ा था एक आलीशान इमारत की दो मंज़िलों में जिन में क...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 22 By Janki Wahie

हथकरघे पर बैठी गौरा को देख, सुबोध चहक कर बोला-
चाची जी, दोनों गलीचे तुरन्त बिक गए।
सुबोध, सच्ची !
आप सुंदर धागों और रंगों को बुनकर, जादुई डिज़ाइन का ऐसा ताना बाना बुनती हो...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 21 By Jahnavi Suman

शामली के पति शैलेंद्र काम के सिलसिले में अक्सर विदेश जाया करते थे, इसलिए उसने अपने बेटे सार्थक का पालन पोषण एक तरह से अकेले ही किया था।
शलेंद्र की रिटायरमेंट के बाद वह खुश थी, कि...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 20 By Harish Kumar Amit

साहब अभी-अभी मंत्री जी की कोठी से लौटकर दफ़्तर के अपने कमरे में आए थे। मंत्री जी ने साहब के विदेश जाने की फाइल पर हस्ताक्षर तो कर दिए थे, मगर ऐसा करने से पहले साहब को जैसे रुला ही द...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 19 By Divya Sharma

क्या कर लोगी तुम इस नौकरी से, कितना कमा लोगी ?
अगर तुम चाहो तो लाखों मे खेल सकती हो
मैं समझी नहीं सर क्या कहना चाह रहे है आप?
समझना क्या है कभी ध्यान से खुद को देखा है आ...

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प्रेम कहानी - टीस By SURENDRA ARORA

टीस - एक प्रेम कहानी शाम होने को थी . धुंधलका उतर रहा था . कमरे में तो उतर भी चुका था . मोबाईल की घंटी बजी तो नजरे स्क्रीन पर गयीं . वहां कनिका का नाम...

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सच्ची श्रद्धा By Sonia Gupta

#my dost gnesha मेरा दोस्त गणेशा – बाल कहानी शीर्षक- सच्ची श्रद्धा ************ “रिया” पांच वर्ष की थी जब उसके माता पिता दोनों एक कार दुर्घटना का शिकार हो गये थे और उसी समय उनकी मृ...

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बातें जरूरी है या आपकी जिंदगी - 2 By Antima Singh

एक शारीरिक शोषण का शिकार हुई लड़की की व्यथा .. माँ जब मैं छोटी थी तो आप कहती थी कि बेटा जब कोई गलत तरीके से टच करे तो जोर से हल्ला मचाना , चुप मत रहना बेटा , आपने ही मुझे गुड टच और...

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मास्को का सच By Ved Prakash Tyagi

मास्को का सच “ललिता! सो गयी क्या?” “नहीं तो, बस ऐसे ही आपकी प्रतीक्षा में बैठे बैठे आँख लग गयी थी।” “हाँ, रात भी काफी हो गयी है, बच्चे भी थक कर सो गए हैं।” “आज आप कहाँ रह गए थे, कभ...

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अमृत और जहर By Ajay Amitabh Suman

भारत की राजधानी दिल्ली में निजामुद्दीन क्षेत्र मेंं निजामुद्दीन बस स्टैंड है। निजामुद्दीन बस स्टैंड से रोड आगे की तरफ इंंडिया गेट की तरफ जाती है।रास्ते में सबसे पहले एक गोलंबर आता...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 18 By Chitra Raghav

विश्वास करो जब मैं घर से निकला था न.. मेरा पोशाक सफेद थी। ये धब्बे मेरे नहीं हैं। घर से मंज़िल तक जो मिला अपना रंग छोड़ गया।
किसका कसूर कहिए, अब का मौसम ही ऐसा है रास्तों पर कीचड़ पह...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 17 By Chandresh Kumar Chhatlani

पिता के अंतिम संस्कार के बाद शाम को दोनों बेटे घर के बाहर आंगन में अपने रिश्तेदारों और पड़ौसियों के साथ बैठे हुए थे। इतने में बड़े बेटे की पत्नी आई और उसने अपने पति के कान में कुछ कह...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 16 By BHOLA NATH SINGH

बेटा एक बड़ी कंपनी में प्रबंधक बन गया। उसने अपनी पसंद से शादी भी कर ली। बहू को एक बच्चा भी हो गया पर बेटे ने खबर तक नहीं दी। अब बच्चा चार वर्ष का हो चला था। अब बेटे को माता-पिता की...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 15 By Bhagwan Vaidya

‘‘अब और विचार न करो, परबतिया। मनीष और बहू कल लौटनेवाले हैं, नागपुर। तुम पारंबी को बैग लेकर तैयार रखना। मैं रामदीन को भेज दूँगी लेने के लिए।’’
‘‘मैं एक शब्द पारंबी से पूछ लेना चाहत...

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मायके का मोह नहीं छूटा तो अपना घर नहीं बसा पाओगी By Sonia chetan kanoongo

विदाई के वक़्त ही वो जैसे दहलीज़ छूट चुकी थी, रस्मों की शुरुआत बढ़ते दिन के साथ शुरू हो रही थी, आज़ादी के पंखों पर जैसे किसी ने चादर डाल दी इतनी भारी साड़ी कल्पना को बोझ के सिवा कोई और...

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ग्यारह वर्ष का समय By Ramchandra Shukla

दिन-भर बैठे-बैठे मेरे सिर में पीड़ा उत्‍पन्‍न हुई : मैं अपने स्‍थान से उठा और अपने एक नए एकांतवासी मित्र के यहाँ मैंने जाना विचारा। जाकर मैंने देखा तो वे ध्‍यान-मग्‍न सिर नीचा किए...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 14 By Ashish Kumar Trivedi

अरे रमा आज काम पर आने में देर कर दी।
रमा के घर में कदम रखते ही अम्मा जी ने पूँछा।
हाँ आज मेरी बिटिया सलोनी का जन्मदिन है। बस उसके लिए ही कुछ बना रही थी। इसलिए देर हो गई।
कित...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 13 By Archana Rai

काॅफी हाउस में बैठी नव्या कॉफी का ऑर्डर कर किसी के आने का इंतजार कर रही थी। परेशान थी रह रह कर घर की समस्याएं ही जेहन में दस्तक दे रही थी। गिरवी पडा घर ..... बीमार पिता का अच्छे अस...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 12 By Aparajita Anamika

शाम का धुंधलका गहराने लगा था । हिरणी सी लगभग कुलांचे मारती वो अपनी झुग्गी की तरफ भागी जा रही थी । बार बार आँखों मे भूखे बच्चों की तस्वीर कौंधती ।

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स्वाभिमान - लघुकथा - 11 By Anuradha Saini

अपने बलात्कारियों को पहचान कर उन्हें सजा दिलाने वाली दामिनी के इन्टरव्यू का आज कई टी.वी.चैनल्स पर सीधा प्रसारण होना था
वह भी टी.वी.चला गंभीर मुद्रा में सोफे पर बैठ गया
यही...

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बातें जरूरी है या आपकी जिंदगी .. By Antima Singh

रोहन , आज मिल रहे हो ना कॉफी शॉप में , मैं जल्दी से तैयार होकर आती हूँ .आज तो तुम्हारी बाइक पर एक लांग ड्राइव हो जाये आखिर ख़ुशी की बात जो है तुम आईएएस बन गए हो । अब हमारे प्यार को...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 10 By अनूपा हरबोला

सुलझे विचारों वाली, तीन भाई बहनों में सबसे बड़ी गीता को ग्रेजुएशन करते ही बैंक में नौकरी मिल गई। बैंक में भी वो अपने काम और व्यवहार के कारण सबकी प्रिय बन गई। न जाने कब उसे अपने सहक...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 9 By Anjali Cipher

रानो, आओ चाय पी लो । काम तो चलता रहेगा।
नहीं मीता दी, यहीं दे दो । खड़े खड़े ही पी लूँगी।
अरी, बाकी महरियाँ तो सारा काम धाम छोड़, ठाठ से बराबर बैठ कर चाय पीती हैं । एक तू ही अन...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 8 By Anagha Joglekar

पहले कुछ धुंधला-सा दिख रहा था लेकिन अब सब स्पष्ट दिख रहा है। एक औरत को बीच सड़क पर बाँधकर खड़ा किया गया है। वह मुँह झुकाए खड़ी है। उसका 'माथा' लहुलुहान है। उसके 'गले'...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 7 By vinod kumar dave

सभी के लिए बात इतनी सी ही थी लेकिन सुशांत के लिए यह जीने मरने का सवाल था। ऊपर से सख्त आदेश था, भुगतान की फ़ाइल अटकनी नहीं चाहिए किसी हालत में, उसे उसका हिस्सा मिल जाएगा। लेकिन हिस्स...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 6 By Tejveersingh

बहू, जुम्मे जुम्मे आठ दिन भी नहीं हुए शादी को और तुमने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिये ।
माँ जी, यह आप क्या कह रहीं हैं? मैं कुछ समझी नहीं ?
अरे वाह, चोरी और सीना जोरी ।
माँ जी,...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 5 By Shashi Bansal Goyal

रामलीला के मंचन की समाप्ति के पश्चात् राम का रूप धरा हुआ पात्र हाथों में धनुष बाण लिए मंच से उतरकर रावण के पुतला दहन के लिए धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था । उसके पास आते ही लोग जय श्री...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 4 By Kirti Gandhi

आज शीला की शादी का दिन था। पिछले सात महीनों से वैभव उसके प्रति जिस प्यार का इजहार करता आ रहा था, उससे शीला भी बहुत खुश थी। इतना बड़ा घर और पढ़ा- लिखा लड़का, उसे तो खुद से खुशनसीब को...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 3 By Kavita Verma

तो भाइयों और बहनों आप बिलकुल बेफिकर हो जाइये। आपका प्रिय नेता आपकी सरकार है न जन्म से लेकर मृत्यु तक हर चीज का जिम्मा मेरा। कहते हुए तालियों की गड़गड़ाहट के बीच प्रदेश के सर्व प्रि...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 2 By Kamal Kapoor

मुग्ध मन से गुलदान में फूल सज़ा रही थी सुमन कि ‘डोर-बेल’बजी।द्वार खोला तो दिल खिल उठा…माँ-पापा खड़े थे सामने।वह माँ से गले मिलने के लिये आगे बढ़ी परंतु उन्होंने उसे परे धकेल दिया औ...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 1 By Chhavi Nigam

ऋचा के कमरे से बाहर आते ही नीरव दाँत पीसते हुए बुदबुदाया ये अंदर मैथ्स की ट्यूशन ले रही थीं, या इन हाईस्कूल के स्टूडेंट्स का दिमाग खराब कर रही थीं, हैं ?

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पनघट By Rajesh Maheshwari

पनघट मुझे पिछले माह ही राजस्थान के एक कस्बे में जाने का अवसर प्राप्त हुआ। मैं अपने एक रिस्तेदार की पुत्री के व...

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रिश्ते की डोर By Dr kavita Tyagi

वर्तमान समाज ऐसे विडंबना के दौर से गुजर रहा है, जब छोटी-छोटी बातों पर रिश्ते टूट रहे हैं । रिश्तों की गिरती गरिमा का युवा मनः मस्तिष्क पर इतना नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है कि आज की...

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भूतवाले पतिपरमेश्वर By Author Pawan Singh

हेलो मेरा नाम प्रशांत दुबे है और मै एक भूत हु जी बिलकुल सही सुना आपने। वैसे तो हम काफी सीधे साधे भूत है लेकिन ज्यादा मिलनसार नहीं है इसलिए हम अपनी भूतिया मण्डली के साथ नहीं रहते। औ...

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देखे कुछ ख्वाब - देखा एक ख्वाब By Bhumika Bhonyare

(कहानी है एक लड़की की जो अपने सपने और समाज की मान्यताओं के बीच फस जाती है) (Office scene)वकील (क्लायंट से)-आपके डिवॉर्स लेने की वजह क्या है?लड़की-मेरे सपने,मेरी आज़ादी वकील- क्या.??...

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चोरी By Neetu Singh Renuka

वह इधर-उधर भटक रहा था। शायद बेमतलब या हो सकता है मतलब से भी। पिछले तीन दिन से वह कोई चोरी नहीं कर पाया था। मिनिस्टर साहब को भी अभी आना था। जाते किसी और बड़े शहर में, आराम से चुनावी...

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जय जवान जय किसान जय विज्ञान By Rajesh Maheshwari

जय जवान-जय किसान-जय विज्ञान मोहनियां गांव का रामसिंह, एक सम्पन्न किसान था। घर में पत्नी, एक नौजवान बेटा और एक बेटी थी। बेटे ने इसी साल कालेज जाना प्रारम्भ किया था। अच्छी खासी खेती...

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वक़्त का खेल By Pawnesh Dixit

कैसे क्रिकेट के खेल में एक कप्तान पर कप्तानी का नशा छा जाता है और मैदान पर गेंदबाजी और बल्लेबाजी में तड़का लगाने के चक्कर में गलत फैसले ले लेता है खामिआज़ा टीम को भुगतना पड़ता है पर...

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सुहाने सफर की ओर। By Vandna Sharma

मैं बहुत दिनों से पापा से ज़िद कर रही थी -" पापा कहीं घूमाने ले जाओ,कहीं लेकर नहीं जाते। सारी छुट्टियां ऐसे ही ख़त्म हो जाती हैं। " पापा ने कहा -"ठीक है इस रविवार को चलेंगे ". मेरी ख़...

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पाँचवाँ कप By Neetu Singh Renuka

गुलाबी फूल और हरी पत्तियों वाले इस बोन चाइना के कप को ख़रीदते वक़्त कभी नहीं सोचा था कि यह टूट भी सकता है। कोई नहीं सोचता। कौन सोचेगा भला कि खरीदा जा रहा नाज़ुक सा कप टूट सकता है और ल...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 24 By kanak harlalka

मां कहां हो आप, और यह क्या कर रहीं है ? आपको किस चीज की कमी है । जरा मेरी पोजीशन का भी खयाल रखना चाहिए था । मैं और आपकी बहू दोनों इतने बड़े पोस्ट पर हैं । फिर आप यह सब ..!!

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स्वाभिमान - लघुकथा - 23 By Jyoti Sharma

अरे! तू तो बीमार थी न कमली फिर क्यों आयी?
और आज तो वैसे ही करवा चौथ है। मैं ये जानती हूं कि बीमार होने पर भी तू इसे छोड़ेगी नहीं तो आज और आराम कर लेती घर पर।
'बीबीजी सच कहूँ...

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कार्तिकेय और गणेश By Arpan Kumar

गाँव से आई एक स्वाभिमानी नानी से दूर रहने वाले दो बच्चों के अंततः पश्चाताप में निखरकर बाहर आने की कहानी।यह कहानी बद्‌ए होते बच्चों में इमेज़-कांशसनेस की प्रवृत्ति को दिखलाती है।

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डॉक्टर शरोडकर By Saadat Hasan Manto

बंबई में डाक्टर शरोड कर का बहुत नाम था। इस लिए कि औरतों के अमराज़ का बेहतरीन मुआलिज था। उस के हाथ में शिफ़ा थी। उस का शिफ़ाख़ाना बहुत बड़ा था एक आलीशान इमारत की दो मंज़िलों में जिन में क...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 22 By Janki Wahie

हथकरघे पर बैठी गौरा को देख, सुबोध चहक कर बोला-
चाची जी, दोनों गलीचे तुरन्त बिक गए।
सुबोध, सच्ची !
आप सुंदर धागों और रंगों को बुनकर, जादुई डिज़ाइन का ऐसा ताना बाना बुनती हो...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 21 By Jahnavi Suman

शामली के पति शैलेंद्र काम के सिलसिले में अक्सर विदेश जाया करते थे, इसलिए उसने अपने बेटे सार्थक का पालन पोषण एक तरह से अकेले ही किया था।
शलेंद्र की रिटायरमेंट के बाद वह खुश थी, कि...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 20 By Harish Kumar Amit

साहब अभी-अभी मंत्री जी की कोठी से लौटकर दफ़्तर के अपने कमरे में आए थे। मंत्री जी ने साहब के विदेश जाने की फाइल पर हस्ताक्षर तो कर दिए थे, मगर ऐसा करने से पहले साहब को जैसे रुला ही द...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 19 By Divya Sharma

क्या कर लोगी तुम इस नौकरी से, कितना कमा लोगी ?
अगर तुम चाहो तो लाखों मे खेल सकती हो
मैं समझी नहीं सर क्या कहना चाह रहे है आप?
समझना क्या है कभी ध्यान से खुद को देखा है आ...

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प्रेम कहानी - टीस By SURENDRA ARORA

टीस - एक प्रेम कहानी शाम होने को थी . धुंधलका उतर रहा था . कमरे में तो उतर भी चुका था . मोबाईल की घंटी बजी तो नजरे स्क्रीन पर गयीं . वहां कनिका का नाम...

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सच्ची श्रद्धा By Sonia Gupta

#my dost gnesha मेरा दोस्त गणेशा – बाल कहानी शीर्षक- सच्ची श्रद्धा ************ “रिया” पांच वर्ष की थी जब उसके माता पिता दोनों एक कार दुर्घटना का शिकार हो गये थे और उसी समय उनकी मृ...

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बातें जरूरी है या आपकी जिंदगी - 2 By Antima Singh

एक शारीरिक शोषण का शिकार हुई लड़की की व्यथा .. माँ जब मैं छोटी थी तो आप कहती थी कि बेटा जब कोई गलत तरीके से टच करे तो जोर से हल्ला मचाना , चुप मत रहना बेटा , आपने ही मुझे गुड टच और...

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मास्को का सच By Ved Prakash Tyagi

मास्को का सच “ललिता! सो गयी क्या?” “नहीं तो, बस ऐसे ही आपकी प्रतीक्षा में बैठे बैठे आँख लग गयी थी।” “हाँ, रात भी काफी हो गयी है, बच्चे भी थक कर सो गए हैं।” “आज आप कहाँ रह गए थे, कभ...

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अमृत और जहर By Ajay Amitabh Suman

भारत की राजधानी दिल्ली में निजामुद्दीन क्षेत्र मेंं निजामुद्दीन बस स्टैंड है। निजामुद्दीन बस स्टैंड से रोड आगे की तरफ इंंडिया गेट की तरफ जाती है।रास्ते में सबसे पहले एक गोलंबर आता...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 18 By Chitra Raghav

विश्वास करो जब मैं घर से निकला था न.. मेरा पोशाक सफेद थी। ये धब्बे मेरे नहीं हैं। घर से मंज़िल तक जो मिला अपना रंग छोड़ गया।
किसका कसूर कहिए, अब का मौसम ही ऐसा है रास्तों पर कीचड़ पह...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 17 By Chandresh Kumar Chhatlani

पिता के अंतिम संस्कार के बाद शाम को दोनों बेटे घर के बाहर आंगन में अपने रिश्तेदारों और पड़ौसियों के साथ बैठे हुए थे। इतने में बड़े बेटे की पत्नी आई और उसने अपने पति के कान में कुछ कह...

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बेटा एक बड़ी कंपनी में प्रबंधक बन गया। उसने अपनी पसंद से शादी भी कर ली। बहू को एक बच्चा भी हो गया पर बेटे ने खबर तक नहीं दी। अब बच्चा चार वर्ष का हो चला था। अब बेटे को माता-पिता की...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 15 By Bhagwan Vaidya

‘‘अब और विचार न करो, परबतिया। मनीष और बहू कल लौटनेवाले हैं, नागपुर। तुम पारंबी को बैग लेकर तैयार रखना। मैं रामदीन को भेज दूँगी लेने के लिए।’’
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मायके का मोह नहीं छूटा तो अपना घर नहीं बसा पाओगी By Sonia chetan kanoongo

विदाई के वक़्त ही वो जैसे दहलीज़ छूट चुकी थी, रस्मों की शुरुआत बढ़ते दिन के साथ शुरू हो रही थी, आज़ादी के पंखों पर जैसे किसी ने चादर डाल दी इतनी भारी साड़ी कल्पना को बोझ के सिवा कोई और...

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ग्यारह वर्ष का समय By Ramchandra Shukla

दिन-भर बैठे-बैठे मेरे सिर में पीड़ा उत्‍पन्‍न हुई : मैं अपने स्‍थान से उठा और अपने एक नए एकांतवासी मित्र के यहाँ मैंने जाना विचारा। जाकर मैंने देखा तो वे ध्‍यान-मग्‍न सिर नीचा किए...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 14 By Ashish Kumar Trivedi

अरे रमा आज काम पर आने में देर कर दी।
रमा के घर में कदम रखते ही अम्मा जी ने पूँछा।
हाँ आज मेरी बिटिया सलोनी का जन्मदिन है। बस उसके लिए ही कुछ बना रही थी। इसलिए देर हो गई।
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स्वाभिमान - लघुकथा - 13 By Archana Rai

काॅफी हाउस में बैठी नव्या कॉफी का ऑर्डर कर किसी के आने का इंतजार कर रही थी। परेशान थी रह रह कर घर की समस्याएं ही जेहन में दस्तक दे रही थी। गिरवी पडा घर ..... बीमार पिता का अच्छे अस...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 12 By Aparajita Anamika

शाम का धुंधलका गहराने लगा था । हिरणी सी लगभग कुलांचे मारती वो अपनी झुग्गी की तरफ भागी जा रही थी । बार बार आँखों मे भूखे बच्चों की तस्वीर कौंधती ।

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स्वाभिमान - लघुकथा - 11 By Anuradha Saini

अपने बलात्कारियों को पहचान कर उन्हें सजा दिलाने वाली दामिनी के इन्टरव्यू का आज कई टी.वी.चैनल्स पर सीधा प्रसारण होना था
वह भी टी.वी.चला गंभीर मुद्रा में सोफे पर बैठ गया
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बातें जरूरी है या आपकी जिंदगी .. By Antima Singh

रोहन , आज मिल रहे हो ना कॉफी शॉप में , मैं जल्दी से तैयार होकर आती हूँ .आज तो तुम्हारी बाइक पर एक लांग ड्राइव हो जाये आखिर ख़ुशी की बात जो है तुम आईएएस बन गए हो । अब हमारे प्यार को...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 10 By अनूपा हरबोला

सुलझे विचारों वाली, तीन भाई बहनों में सबसे बड़ी गीता को ग्रेजुएशन करते ही बैंक में नौकरी मिल गई। बैंक में भी वो अपने काम और व्यवहार के कारण सबकी प्रिय बन गई। न जाने कब उसे अपने सहक...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 9 By Anjali Cipher

रानो, आओ चाय पी लो । काम तो चलता रहेगा।
नहीं मीता दी, यहीं दे दो । खड़े खड़े ही पी लूँगी।
अरी, बाकी महरियाँ तो सारा काम धाम छोड़, ठाठ से बराबर बैठ कर चाय पीती हैं । एक तू ही अन...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 8 By Anagha Joglekar

पहले कुछ धुंधला-सा दिख रहा था लेकिन अब सब स्पष्ट दिख रहा है। एक औरत को बीच सड़क पर बाँधकर खड़ा किया गया है। वह मुँह झुकाए खड़ी है। उसका 'माथा' लहुलुहान है। उसके 'गले'...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 7 By vinod kumar dave

सभी के लिए बात इतनी सी ही थी लेकिन सुशांत के लिए यह जीने मरने का सवाल था। ऊपर से सख्त आदेश था, भुगतान की फ़ाइल अटकनी नहीं चाहिए किसी हालत में, उसे उसका हिस्सा मिल जाएगा। लेकिन हिस्स...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 6 By Tejveersingh

बहू, जुम्मे जुम्मे आठ दिन भी नहीं हुए शादी को और तुमने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिये ।
माँ जी, यह आप क्या कह रहीं हैं? मैं कुछ समझी नहीं ?
अरे वाह, चोरी और सीना जोरी ।
माँ जी,...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 5 By Shashi Bansal Goyal

रामलीला के मंचन की समाप्ति के पश्चात् राम का रूप धरा हुआ पात्र हाथों में धनुष बाण लिए मंच से उतरकर रावण के पुतला दहन के लिए धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था । उसके पास आते ही लोग जय श्री...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 4 By Kirti Gandhi

आज शीला की शादी का दिन था। पिछले सात महीनों से वैभव उसके प्रति जिस प्यार का इजहार करता आ रहा था, उससे शीला भी बहुत खुश थी। इतना बड़ा घर और पढ़ा- लिखा लड़का, उसे तो खुद से खुशनसीब को...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 3 By Kavita Verma

तो भाइयों और बहनों आप बिलकुल बेफिकर हो जाइये। आपका प्रिय नेता आपकी सरकार है न जन्म से लेकर मृत्यु तक हर चीज का जिम्मा मेरा। कहते हुए तालियों की गड़गड़ाहट के बीच प्रदेश के सर्व प्रि...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 2 By Kamal Kapoor

मुग्ध मन से गुलदान में फूल सज़ा रही थी सुमन कि ‘डोर-बेल’बजी।द्वार खोला तो दिल खिल उठा…माँ-पापा खड़े थे सामने।वह माँ से गले मिलने के लिये आगे बढ़ी परंतु उन्होंने उसे परे धकेल दिया औ...

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स्वाभिमान - लघुकथा - 1 By Chhavi Nigam

ऋचा के कमरे से बाहर आते ही नीरव दाँत पीसते हुए बुदबुदाया ये अंदर मैथ्स की ट्यूशन ले रही थीं, या इन हाईस्कूल के स्टूडेंट्स का दिमाग खराब कर रही थीं, हैं ?

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पनघट By Rajesh Maheshwari

पनघट मुझे पिछले माह ही राजस्थान के एक कस्बे में जाने का अवसर प्राप्त हुआ। मैं अपने एक रिस्तेदार की पुत्री के व...

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रिश्ते की डोर By Dr kavita Tyagi

वर्तमान समाज ऐसे विडंबना के दौर से गुजर रहा है, जब छोटी-छोटी बातों पर रिश्ते टूट रहे हैं । रिश्तों की गिरती गरिमा का युवा मनः मस्तिष्क पर इतना नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है कि आज की...

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भूतवाले पतिपरमेश्वर By Author Pawan Singh

हेलो मेरा नाम प्रशांत दुबे है और मै एक भूत हु जी बिलकुल सही सुना आपने। वैसे तो हम काफी सीधे साधे भूत है लेकिन ज्यादा मिलनसार नहीं है इसलिए हम अपनी भूतिया मण्डली के साथ नहीं रहते। औ...

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देखे कुछ ख्वाब - देखा एक ख्वाब By Bhumika Bhonyare

(कहानी है एक लड़की की जो अपने सपने और समाज की मान्यताओं के बीच फस जाती है) (Office scene)वकील (क्लायंट से)-आपके डिवॉर्स लेने की वजह क्या है?लड़की-मेरे सपने,मेरी आज़ादी वकील- क्या.??...

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चोरी By Neetu Singh Renuka

वह इधर-उधर भटक रहा था। शायद बेमतलब या हो सकता है मतलब से भी। पिछले तीन दिन से वह कोई चोरी नहीं कर पाया था। मिनिस्टर साहब को भी अभी आना था। जाते किसी और बड़े शहर में, आराम से चुनावी...

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जय जवान जय किसान जय विज्ञान By Rajesh Maheshwari

जय जवान-जय किसान-जय विज्ञान मोहनियां गांव का रामसिंह, एक सम्पन्न किसान था। घर में पत्नी, एक नौजवान बेटा और एक बेटी थी। बेटे ने इसी साल कालेज जाना प्रारम्भ किया था। अच्छी खासी खेती...

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वक़्त का खेल By Pawnesh Dixit

कैसे क्रिकेट के खेल में एक कप्तान पर कप्तानी का नशा छा जाता है और मैदान पर गेंदबाजी और बल्लेबाजी में तड़का लगाने के चक्कर में गलत फैसले ले लेता है खामिआज़ा टीम को भुगतना पड़ता है पर...

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सुहाने सफर की ओर। By Vandna Sharma

मैं बहुत दिनों से पापा से ज़िद कर रही थी -" पापा कहीं घूमाने ले जाओ,कहीं लेकर नहीं जाते। सारी छुट्टियां ऐसे ही ख़त्म हो जाती हैं। " पापा ने कहा -"ठीक है इस रविवार को चलेंगे ". मेरी ख़...

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पाँचवाँ कप By Neetu Singh Renuka

गुलाबी फूल और हरी पत्तियों वाले इस बोन चाइना के कप को ख़रीदते वक़्त कभी नहीं सोचा था कि यह टूट भी सकता है। कोई नहीं सोचता। कौन सोचेगा भला कि खरीदा जा रहा नाज़ुक सा कप टूट सकता है और ल...

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