तात्विक विचारधारा"आत्मैव आत्मनो बन्धु:आत्मैव आत्मनो रिपु:।"अर्थात मनुष्य अपने आप का मित्र है,अपने आप का शत्रु भी।क्योंकि हरेक को सबसे पहले अपने आप की मदद करनी चाहिए।उसे ही देवभी मदद करते हैं।अपने अंतरात्मा की आवाज सुनकर जो सही राह पर चलता है, वो अपने आप का मित्र हैं, आत्मा की आवाज़ न सुनकर जो राह भटक गया वो स्वयं अपना शत्रु है, उसे शत्रु की जरूरत नहीं है।भगवान बुद्ध ने कहा है कि आत्मदीपो भव। तु ही अपना दीपक बन। अर्थात अपना रास्ता तुही तय कर।