My Satire Poem ....!!!
मिट्टी-चूने की वो दीवारें मजबूत
हुआ करती थी साहब...!! 🥰
जब से सीमेंट के बनने लगे
है तो टूटने लगे है घर..!! ❤️
छोटे-से एक कमरे में छ-सात
इकट्ठे भले ही रह लेते थे ..!!🌹
पर एक-दूसरे से जूड़े रहते थे
आज रुम-ओ-दिल अलग है..!!💔
ठंड-गर्म बारिश ☔️ छाँव धूप
जीदगीं के हर मसले साथ झेलते.!!🏚
आज घर 🏘 तो बड़े बड़े है पर
दिलों के बीच अनदेखी दिवारें है.!!💔
मासूमियत थी अपनापन था छोटे
घरों में मन-मोटाई कभी नहीं थी..!!
आज भले ही घर आलीशान-दर्जा है
पर माँ-बाप का यहाँ कोई न दर्जा है.!!
क़ुदरत भी मेहरबान हूऑ करती थी
छोटे 🏠 धरोहर की मोटी परत पर..!!
आज कुदरत भी बनी हैं क़हर वाइरस
एक वाइरस से ही दिखाई हमें औक़ात
✍️🥀🙏🙏🏚🏡🏘🙏🙏🥀✍️