ठहर जाती हूं उस वक्त में जब तुम मेरे साथ थे
मोहब्बत तो थी हम दोनो में मगर न कोई संवाद थे
ना कोई इजहार था ना ही इंकार था
गुफ्तगू सनम से करने को मिले न लम्हात थे
दीदार ए सनम को सवार हुई जो कश्ती में
रिवाजों की लहरों में डूबने के हालात थे
मिलने की थी जुस्तजू पर मिल ना पाए कभी
मुलाकातों का जब वक्त आया तो बिछड़ने के हालात थे
ना कभी तुमने कलाई पकड़ी ना मैंने पलकें झपकाईं
प्रेम में थे दोनों मगर सहमे हुए जज्बात थे
शिवानी वर्मा
शांतिनिकेतन