लेखक देश का वो धरोहर है जिसको सम्मान तब मिलता है जब उसके पास जिंदगी कुछ कम पड़ जाती है , या जिंदगी रहती ही नहीं जैसे प्रेमचन्द को ही ले लीजिए जीते जी कोई उनको वो सम्मान ना दे पाया जिसकी उनको जरूरत थी।
एक लेखक सब कुछ चंद कागज के टुकड़ों पर अपनी सब से सस्ती चीज से जिंदगी लिख देता है ताकि कोई और वो ना सहे जो उसने सहा है। आने वाली नस्लें इसी कागज के चंद टुकड़ों में अपनी सारी खुशियां ढूंढेंगे। परंतु हम एक लेखक के लिए कभी नहीं सोचते लेखक ही है जो किताबों में रंग भरता है, देश का प्रतििधित्व अप्रत्यक्ष रुप से प्रदर्शित करता है, लेखक एक बेरंग सी दुनिया को रंगीन कर देता है, निर्जीव सी चीजों में आग भर देता है, साहब, लेखक कभी अपने लिए नहीं जीता वो सिर्फ आने वाली नस्लों के लिए जीता है। वो कभी अपने लिए नहीं लिखता जब भी लिखता है समाज, देश, राष्ट्र, और मानव जाति के कल्यणार्थ ही लिखता है।
लेकिन हमारा ये समाज कभी इस बात को नहीं जान सकेगा क्योंकि सब को अपना ईगो सर्टिसफाइड करना होता है।
लेखक का सपना इतना ही होता है कि वो एक ऐसी दुनिया बनाना चाहता है जहां प्यार , मोहब्बत, नेकदिली, सम्मान, संस्कृति, संस्कार, इज्जत, इबादत,इनायत, सब कुछ अदभूत हो।
नई पीढ़ी इस बात को समझ ले यही काफी है एक लेखक के लिए।