लघुकथा
माँ
‘‘माँ! आज अस्पताल में एक नेत्र चिकित्सक के रूप में आज मेरा पहला दिन और पहला ऑपरेशन भी है,’’ कहते हुए मनोरमा माँ निर्मला देवी के चरण स्पर्श करने लगी।
‘‘ईश्वर मेरी मनो को सफलता और शक्ति दे!’’ निर्मला ने उसके लिए कामना की। अगले ही क्षण बोली-‘‘डॉक्टर साहिबा ,क्या मैं आपकी पहली मरीज़़ को देखने अस्पताल आ सकती हूँ ?’’
‘‘हाँ ,हाँ , क्यों नहीं! लेकिन दो बजे के बाद।’’
‘‘ठीक है, दो बजे के बाद ही आऊँगी।’’
मनोरमा ने बड़े मनोयोग से शल्यकर्म का सफलतापूर्वक संपादन किया। बारह बजे मरीज़ को विस्तर पर पहुँचा दिया। जरूरी निर्देश देकर मनो अपने केबिन में चली गई। ठीक दो बजे निर्मला अस्पताल पहुँची और मनो को बधाई दी। दोनों मरीज़ से मिलने गईं।
मरीज़ को देखते ही निर्मला ने उनके पाँव छू लिए। मनो कुछ समझती इससे पहले मरीज़ सरला देवी पूछ बैठी-‘‘कौन ?’’
‘‘माँ जी ! मैं निर्मला। और जिसने आपकी आँखों का ऑपरेशन किया है वह आपकी पोती डॉक्टर मनोरमा है। आपने जिसे मेरी कोख में मारना चाहा था और मेरे इनकार करने पर मुझे आपका घर छोड़ना पड़ा था ।’’
‘‘मुझ अभागिन को और लज़्ज़ित न करो बहू! अपने कर्मों का फल भुगत रही हूँ। हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।’’
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भोला नाथ सिंह
बोकारो