माँ शब्द नहीं जननी है भावों की,
वात्सल्यमयी है ममता की छावों भी।
महासागर को भी जो आंचल में समेट ले वही गागर है,
माँ ही ब्रह्मा मां ही रूद्र मां ही नटवरनागर है।।
मां स्वा ही की अनुपम कृति है,
माँ स्वयम् ही परिपूर्ण धृति है।
योगों की आठों विधान है माँ.
भगवानों की भगवान है माँ।।
-सनातनी_जितेंद्र मन