सातों ज़मी और फलक तेरे कदमो में लें आऊं...
तेरे हर दर्द को अपना दर्द बनाऊं ....
क्या उस हद तक मोहब्बत करने की इजाज़त है......
तेरे लबों पर लिख दूँ अपना नाम.....
जिस्मो की हदो को पार कर तेरी रूह में समा जाऊं ......
क्या उस हद तक मोहब्बत करने की इजाज़त है......
मेरे मरने के बाद भी ना उतरे तेरे सर से मेरे इश्क़ का जूनून.........
क्या उस हद तक मोहब्बत करने की इजाज़त है......
ज़माने भर में दो जिस्म एक जान कहलाऊँ ......
क्या उस हद तक मोहब्बत करने की इजाज़त है......
मेरी नज़रो की हर राह में .....
मेरी जुबा की हर दुआ में ....
मैं तुझको ही लाऊँ ...
क्या उस हद तक मोहब्बत करने की इजाज़त है......