ये किस्से, ये कहानी,
ये कागज की कश्ती
यह उम्र का एक दौर,
पहले भी फासले थे,
आज भी वकत वही पर थहेरा हुआ है।
ये बाते ये नाराज़गी
ये कागज़ पर लिखी कहानी,
मेरा जूठ मुठ का रूठना,
तेरा समझकर भी ना समझना।
फिर फासलो का और भी बढ़ना,
आज भी एक सवाल करता हे दिल!
क्या इस लिए ही हम करीब आए थे।
ये गुस्सा, ये बेरुखी..
अब ना तेरा मनाना और ना ही मेरा रूठना।
अब तेरे मेरे बीच में कुछ है,
तो बस इंतजार की इंतिहा...
बस एक खामौशी..
और खामौशी में भी
बस तुम ही तुम...
बस तुम ही तुम।।
દર્શના રાધે રાધે