छाती की पसली हुई कुंडल का छिद्र है कानो में है अभाव किंतु कर्ण को किया न विचलित बाणों ने। नेत्रों में तेज है दिनकर का भृकुटी प्रत्यंचा रूपक है तांडव को तत्पर ध्वज विनाश का सूचक है। नेत्र मेरे जो देख रहे उत्प्रेरक रूप है दृश्यों का रोम रोम रण मेरी है या रण गर्जन है कण कण का महाराज या कर्ण नही यह रौद्र रूप है शंकर का। #महाभारत #दानवीर कर्ण

Hindi Blog by Winter Soldier : 111773829

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now