दिल से...
महक उठा साँसों से तेरी
ये सारा संसार हमारा
सीख लिया आँखों ने करना
हरदम इंतेजार तुम्हारा
कुछ न कहो फिर भी समझे है
धड़कन तेरी हर बात
परिपक्व हुआ है संग उमर के
साजन प्यार हमारा
ना वादे ना कसम वफा की
ना रंगारंग उपहार
आँखें पढ़ती हैं प्रीत की पाँती
मन के सभी विचार
और नहीं कुछ मागूँ प्रभु से
नित जब ध्यान लगाऊँ
बस जीना संग-संग में तुम्हारे
मेरे जीवन का सार
ना श्रृंगार जरूरी है अब
ना रास-रंग मनुहार
चाहे मुँह से कभी न बोलो
प्यार भरे उद्गार
साथ तुम्हारे होना ही अब
सबसे बड़ा सौभाग्य
तेरी चितवन से अँकुराया
है बगिया पे निखार
कई पड़ाव पार कर लिये
है संध्या झुक रही जमीं पर
परछाइयाँ हैं कद से लंबी
उम्र के हस्ताक्षर चेहरों पर
पर जीवन सरिता की कलकल
हरदम नई कुछ और मनोरम
सुरभित पवन नवी कोंपल से
बन मुस्कान सजी अधरों पर
मौलिक एवं स्वरचित
श्रुत कीर्ति अग्रवाल
shrutipatna6@gmail.com