लिखते है और मिटाते हैं .........
ये बचपन में ही कर पाते हैं ।
ग़लतियाँ केवल मासूमियत में ही मिटाई जा सकती हैं ।
वयस्कता की दहलीज़ पर तो समझदारी आड़े आ जाती है ।
बचपन के दिन बीत गए फिर तो अहं सर्वोपरि हो जाता है ।
फिर क़द ऊँचा और मासूमियत अदनी - सी हो जाती है ।