मैं और मेरे अह्सास

फ़िर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं l
दिलों जान निसार करते हैं ll

कभी भी बावफा हो न सकें वो l
आज वफ़ा का दम भरते हैं ll

एक लम्हा भी सुकून ना दे सके l
और अब चै न ओ करार हरते है ll

मुहब्बत ने दिया रुस्वाई का गम l
क्यूँ दिल में खास जगह रखते है?

एक बार जी भर के देखने के लिए l
छत पर अड्डा जमाए रहते हैं ll
२०-५-२०२२

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111806694

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