दूर नदिया की तलाश में झरने को अनदेखा करते गए।
पानी तो पास में ही था,हम इधर उधर भटकते गए।
थक हार कर आ गए मरने की कदार पे।
आखिर में नजार आया झरना, झुकी आंखो की मजार पे।
पर क्या फायदा।
प्यास तो बुझी नही और हम हाथ फैलाए रह गए।
कास वास्ता सिर्फ पानी और प्याश् का रखा होता।
हम हाथ फैलाके नही सिना तान के खड़े होते।

-Tru...

Hindi Poem by Tru... : 111815006

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