बार - बार ले जाती है नजर वहाँ !
उचित - अनुचित की लकीरे लांघकर |
लगता है ! है कोई अपना कहीं ,
बार -बार निराशा में भी , क्यों?
कबतक ? तय नही ! पता नही !!...

Hindi Poem by Ruchi Dixit : 111848050

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