एक तू ही तू दिखे...............
क्यूं तू अपना सा लगे , मेरे इश्क में सपना सा लगे
नदियों की बेहती धाराओं में , सागर के संगम तक
बस एक तूही जीवन में राहत सा सजे ।
यादों के लम्हों से आगे बढ़ कर ,प्रेम की अनंत सीमा तक ,
बस हर छांव से लेकर धूप तक
एक तू ही तू दिखे ।
निगाहों की बेपरवा गुस्ताखियो पर जैसे ,
तू प्रीत का वो आलम सा रचे ,
रातों से लिए सूरज की पेहली किरण तक
एक तू ही तू दिखे ।
जीवन की हर पहेलियों के जवाब सा ,
मेरे दिल की वो मौन आवाज सा,
तेरे ख्यालों से लेकर मेरे सामने हुए दीदार सा आइना
एक तू ही तू दिखे ।
ना जाने ये क्या अक्ष है ,
दिल की आवाज थी जो तू वही शक्श है ,
पढ़ा है जो प्रेम किताबो में , उन्हीं के सायों सा मुझे बस ,
एक तू ही तू दिखे ।
सांज होते ही रातों का पैग़ाम मिलने से ,
तेरी आंखों में मुझे बिछड़ने के आंसू का दर्द मिले ,
क्यूं रोता है दूर जाने से ,
अगले जन्म का ज़रा वो नज़ारा तो देख , मेरी बाहों में
एक तू ही तू दिखे ।
– HEER