इस संसार मे सबकुछ पहले से ही नियत है
नियंता द्वारा किसको , कहाँ , किस प्रकार अपना
अंशदान देना है यह भी पहले से ही तय है | उसी के अनुरूप विचारो का निर्माण , प्रचार -प्रसार और ग्रहणशीलता आती है | यहीं से कर्तापन की छुरी
स्वंय को धीरे -धीरे रेतती है , हर कोई सतगुरु नानक नही होता | हर किसी मे सतगुरू नानक नही होता |