Hindi Quote in Poem by Birendar Singh

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कविता शीर्षक, बेटियों के लिए


सदियों से दहेज संकट बनी,बेटियों के लिए।
एक एक निवाले को तरसी, रोटियों के लिए।
कभी भ्रूण में कभी इन्हे,जिंदा जलाया गया।
इस दहेज का खंजर बेटियों पे चलाया गया।
सर पे चली हैं कैंचियां गेसू चोटियों के लिए।
सदियों से दहेज संकट बनी बेटियों के लिए।

जुल्म ढाए बहुत ही,की जीवन की तराशना।
हर तरफ दुष्कर्मी के चर्चे यौवन की वासना।
शोर जबरदस्त अपराध का, अचानक हुआ।
मंजर ये कैसा अत्याचार का भयानक हुआ।
जतन क्या करें हम नियत खोटियों के लिए।
सदियों से दहेज संकट बनी बेटियों के लिए।

वक्त मुस्कुराए बेटियों की महफूज़ हँसी रहे।
इनका आदर ही उन्नति सूझ बूझ खुशी रहे।
पवित्र इस ज़माने में उसूलों की लड़ी न रही।
सचाई के गुलशन में ,फूलों की झड़ी न रही।
क्या पैदा होती हैं बेटियां कसौटियों के लिए।
सदियों से दहेज संकट बनी बेटियों के लिए।

सब की जुबां पे लालच ये दुष्कर्मी के तराने।
बरबाद हो गए हैं हवस की बेरहमी से घराने।
बहुत हुआ सब कुछ जहां में बांटेंगे उलफत।
होंगी न बेटियां दुखी घृणा के काटेंगे दरखत।
माफ़ी मिलती नहीं,रे गलती मोटियों के लिए।
सदियों से दहेज संकट बनी बेटियों के लिए।

Birendar Singh Athwal

Hindi Poem by Birendar Singh : 111893146
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