..... काफिले चलते रहते है,
सफर होते रहते है,
लोग आते है और चले जाते है,
मगर कुछ एक होते है...जिनकी प्रतिमाएं हमारे मनोभूमि के स्तर पर धुंधली हो जाए ,
मगर मिटती नही है।
किसी दूसरे व्यक्ति के आंख में अपना ही रूप
देखना बेशक प्रेम का पथ है।
यह इतनी विशाल भावना है की,
इसकी कोई हर तरह से अलग अलग परिभाषा है।
जिस रूप में ,जिस परिस्थिति में हम एक दूसरे से मिलते है ,
वह अलग अलग रूप का हमारे मस्तिष्क पर प्रभाव डालती है।
...
18_19.
rahul.....