“उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्ग
पथस्तत्कवयो वदन्ति॥”
कठोपनिषद के इस कथन को जिस युगद्रष्टा
ने सर्वग्राह्य बना व्यक्ति में नविन चेतना
का संचार किया। मॉ भारती के लाड़ले बेटे,
राष्ट्रीय वैचारिक चेतना के बोध केंद्र, त्याग,
तपस्विता के शिखर ध्वज स्वामी विवेकानंद को
निर्वाण दिवस पर सादर नमन ।
🙏. 🙏. 🙏.
- Umakant