Hindi Quote in Story by Rohan Beniwal

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"यादों के पन्ने" releasing on 9th may

जब मैंने "यादों के पन्ने" लिखना शुरू किया, तो मुझे नहीं पता था कि यह कहानी मुझे कहाँ ले जाएगी। ये बस एक सुबह का ख्याल था—एक लड़की जो स्टोर रूम की सफाई करने निकलती है। पर जैसे-जैसे मैंने शब्दों को पन्नों पर उतारा, ऐसा लगा मानो मैं खुद उस स्टोर रूम में हूँ… धूल उड़ रही है, पुरानी चीज़ों की गंध है, और अतीत धीरे-धीरे सामने आ रहा है।

डायरी का विचार अचानक आया। मैं सोचने लगा—अगर हमें अपने किसी बुज़ुर्ग की असल सोच, उनका बीता जीवन, उनका अधूरा प्यार या मां बनने का अनुभव पढ़ने को मिले, तो कैसा लगेगा? शायद वही एहसास रिया के ज़रिए मैंने खुद महसूस किया।

हर पन्ना लिखते समय मेरी आँखें भी कई बार भर आईं। दादी का वह अधूरा प्रेम, स्टेशन पर पहली बार देखे गए दादा जी का वर्णन, एक माँ के रूप में महसूस की गई पहली भावना—इन सबको लिखना, किसी और की नहीं, जैसे अपनी ही यादों को टटोलना था।

यह कहानी मेरे लिए सिर्फ एक रचना नहीं है—यह एक अनुभव है। एक ऐसी यात्रा, जिसने मुझे एहसास कराया कि रिश्ते सिर्फ बोले नहीं जाते, वो जिए जाते हैं। और कभी-कभी, सबसे गहरे रिश्ते उन्हीं पन्नों में मिलते हैं जो धूल में दबे होते हैं।

जब मैंने अंत में रिया से वो आखिरी लाइन लिखवाई—"अब मैं भी अपने पन्ने जोड़ूँगी..."—तो जैसे खुद से भी एक वादा कर लिया कि मैं भी अपने शब्दों से किसी दिन किसी की याद बन सकूं।

"यादों के पन्ने" लिखना, मेरे लिए लिखना नहीं, महसूस करना था।

Hindi Story by Rohan Beniwal : 111977283
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