मैं खड़ा इस पार रहा हूँ
सुख मेरा उस पार रहा है,
उस शिखर पर जो दिखा है
वह मनुज का अवतार रहा है।
पत्रों में प्यार भरा है
उनको यह स्वीकार नहीं है,
उसकी राह अलग-थलग है
मेरी राह बहुत सरल है।
मेरा राष्ट्र सतत व्यापक है
शक्ति के आगे शान्ति सबल है,
नतमस्तक जब होना ही है
हल्लागुल्ला क्यों करना है!
पथ की उर्जा बटोर रहा हूँ
राम-रावण को देख रहा हूँ,
जिसके मन में दुष्कर्म खड़े हैं
उसका विनाश देख रहा हूँ।
* महेश रौतेला