Hindi Quote in Motivational by चंद्रविद्या चंद्र विद्या उर्फ़ रिंकी

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बाबू साहब की हाथ में एक घड़ी थी । दिखने में बड़ी ही कीमती लग रही थी । वो किसी भद्र महिला के साथ बैठे रेस्ट्रोंट में चाय को चुस्कियां ले रहे थे । मिनी उन्हें उत्सुकता से टुकुर टुकुर देख रही थी ।वैसे तो मिनी बाबू साहब को हमेशा देखा करती थी। वो एक बड़ी सी कार में आया करते , कार किस कंपनी की है , यह तो नहीं मालूम होता मगर सफेद रंग की लंबी गाड़ी थी। हमेशा चमचमाती थी जैसे आज ही खरीदी हो । मिनी हमेसा उनके आने का इंतजार करती थी । क्योंकि बाबू साहब पैसे से अमीर तो लगते थे ही , दिल के भी अमीर नजर आते थे । कभी कभी दो पैसे दे देते मिनी को , तो कभी कुछ खाने को । मिनी मुस्कुराकर सर झुकाकर धन्यवाद कह देती और बाबू साहब बदले में मुस्कुराकर सिर पर हाथ फेर देते । बाबू साहब जिस कंपनी में काम करते थे मिनी उसी कंपनी के बाहर ही भीख मांगा करती थी । और रात को सड़क के किनारे तो कभी किसी मंदिर की सीढ़ी पर जहां सोने के लिए भिखारियों का जमाबड़ा लगता वहां सो जाया करती । मिनी अकेली नही थी मिनी जैसी और भी कई थी कुछ उससे बहुत बड़े तो कुछ उससे भी छोटे मगर सबका अपना कहने के लिए कोई न कोई था । मगर मिनी का कोई नहीं । एक रोज़ मिनी के बाबू साहब नहीं आए । मिनी उनका इंतजार करती रही और इसी तरह एक दिन दो दिन और ऐसे ही सप्ताह गुजर गए ।मगर मिनी को उसके बाबू साहब नजर नहीं आए । मिनी को लगा बाबू साहब कही चले गए है कुछ दिन बाद आ जाएंगे । शायद , आज पहली बार मिनी के दिल में आया बाबू साहब से उसका रिश्ता सिर्फ पैसों का लगाव नहीं था बल्कि दिल से भी लगाव था । क्योंकि बाबू साहब के पैसे में भीख की खुशबू नहीं बल्कि प्रेम और इज्जत की आती थी । धीरे धीरे दिन बीतते गया मिनी की आंखों में बाबू साहब के लिए अब भी इंतजार था मगर दिन सप्ताह और महीना बीत गया । मिनी को लगा उसके बाबू साहब अब यह जगह हमेशा के लिए छोड़कर चले गए । अब उसके बाबू साहब कभी नहीं आयेंगे । शायद उनका तबादला कही ओर हो गया हो । अब शायद मिनी भी इंतजार करना छोड़ चुकी थी । मिनी अब रोज की भांति गाड़ियों के पीछे भागती कई बाबू साहबों के कुर्ते खींचती तो दो चार पैसे आ ही जाते ।और मिनी के पेट भरने लायक हो ही जाता । एक बार मिनी ऐसे ही किसी एक गाड़ी वाले के पीछे भाग रही थी परंतु शायद गाड़ी वाले में दया नहीं थी । वह मिनी को कुछ दे न पाया और गाड़ी रफ्तार से आगे बढ़ गई । मिनी फिर भी दौड़ी शायद इस आश में कि अभी भी कही दया बची हो , मगर पैरों ने जवाब दे दिया वह गाड़ी की भांति तेज - दौड़ न सकी। जैसे ही वह रुकी पीछे से आ रहे बहुत तेज बाइक चालक से टकरा गई शायद बाइक वाले ने अपना कंट्रोल खोल दिया था । मिनी वही सड़क की कुछ दूरी पर जा गिरी । मिनी को लगा जैसे वो हवा में थी और अब उसके पास चंद सांसे ही बची हो । मिनी के मन में एक आखिरी बार बाबू साहब से मिलने की इक्षा जाग उठी । उसके बाद मिनी को आखिरी बार सिर्फ हल्का धुंधला सा दिखा फिर न जाने क्यों अंधेरा छा गया उसके बाद मिनी को कुछ याद नहीं । शायद मिनी को लगा उसकी जिंदगी यही तक थी । ऐसा नहीं था मिनी के अपने सपने नहीं थे । मिनी अपने सपने में कई बार स्कूल गई थी । मिनी यथार्थ में भी स्कूल जाना चाहती थी मगर मिनी का स्कूल में नाम कौन लिखवाता मिनी जैसे बच्चों को देख कर लोग दूर से ही भगा दिया करते है । कही कुछ मांग न ले । फिर उनकी मजबूरियों को कौन समझे ? कई घंटे बीत गए मिनी की पलके फड़फड़ाने लगी , उसने धीरे धीरे आंखे खोली उसे समझ नहीं आया। क्या वह मर चुकी है और यदि मर चुकी है तो क्या अभी वह स्वर्ग में है । तभी उसे अपने शरीर में कुछ दर्द का एहसास हुआ और कुछ लोगों की फुसफुसाहट धीरे धीरे उसके कानो तक पहुंची जिससे वह इतना तो समझ गई कि अभी वह जिंदा है । उसने धीरे - धीरे अपनी आंखे इधर उधर घुमाई। चारों तरफ सफेद दीवार थी जिस पर कोई दाग नहीं था । कुछ हरे रंग की चादर लोहे से बने स्टैंडो पर लटकी थी । उसे समझते देर न लगा वह अस्पताल में है ।अचानक एक हाथ उसके सिर पर बड़े प्यार से किसी ने सहलाया मिनी ने हल्का सा अपनी आंखे की पुतलियों को ऊपर की ओर उठाया जिससे उसकी गर्दन भी ऊपर की ओर उठ गई उसे दर्द का अहसास हुआ उसने हल्की- सी आह भरी । किसी ने मीठी सी मनमोहक आवाज में बहुत प्यार से पूछा " मिनी तुम ठीक हो ज्यादा दर्द तो नहीं " । अरे हां यह तो बाबू साहब है वो अचंभे में मगर उत्साहित हो चुकी थी ।क्या उसके बाबू साहब ने उसे बचाया ? क्या उसके बाबू साहब उसके लिए आए है ? हजारों सवाल मन में उमड़ रहे थे । वह उठना चाहती थी परंतु उसके बाबू साहब ने उसे मना किया । मगर मिनी अपने बाबू साहब को देख अपने सारे दर्द भुला बैठी वह जल्दी से उठ कर बैठ गई । उसके मुख से बस एक ही वाक्य निकला बाबू साहब आप इतने दिन क्यों नहीं आए ? पता है मैं रोज आपको ढूंढती थी । बाबू साहब के आंखों में अथाह प्रेम छलक उठा उनके हृदय में एक टीस उठी और एक अफसोस भाव नजर आया बाबू साहब ने सोचा ! क्या वो आता तो मिनी के साथ ऐसा नहीं होता? और मिनी उसके मन में उसके लिए इतनी इज्जत। , इतना प्रेम क्यों ? विजय (मिनी के बाबू साहब ) को घटना स्थल के लोगो ने बता मिनी जब बेहोश थी उसके आखिरी शब्द बाबू साहब थे । विजय के हृदय में उस बच्ची के लिए अंतहीन प्रेम उबर उठा यही तो बुलाती थी उसकी मिनी बाबू साहब । विजय ने प्यार से मिनी के सिर पर हाथ फेरा और बोले मिनी आज से तुम हमारे साथ हमारे घर रहना । वहां तुम्हारी जैसी एक और छोटी मिनी है । जो तुम्हारी ही तरह प्यारी है । बाबू साहब के आंखों में आंसू थे और मिनी के भी ।

Hindi Motivational by चंद्रविद्या चंद्र विद्या उर्फ़ रिंकी : 111978583
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