अजीब ज़ुल्म करती हैं तेरी ये यादें,
जो पलकों पे उतरें तो नींदें भी रूठ जाएं,
हर सांस में बसे हो तूम, हर लम्हा तेरा नाम हो जैसे,
जैसे धड़कनों की ज़ुबां बन गई हो तेरी बातें।
सोचूं तुझे तो ख्वाबों की कश्ती डूबने लगे,
ना सोचूं तो ये खाली दिल किसी किनारे को तरसे।
राहों में तेरा अक्स इस तरह बिखरा है जैसे तू हवा बनकर मुझे छू जाता है,
और हवाओं में तेरा असर कुछ इस कदर है कि तेरे बिना सांस भी अजनबी सी लगती है।
छूटे भी कैसे तुझसे — तू कोई रिश्ता नहीं, फिर भी सबसे करीब है,
तू ही तो है मेरा सफर, मेरी मंज़िल, मेरा रास्ता, और हर कदम पे मेरी तन्हाई की ताबीर भी तू ही है।"🌿🌿🌿