Hindi Quote in Poem by ज़ख्मी__दिल…सुलगते अल्फ़ाज़

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ज़िन्दगी की ज़द में हर रोज़
बिकती है,

एक स्त्री ही स्त्री को सर-ए-बाज़ार
बेचती है,

ये क्या मंज़र है मेरे शहर की
गलियों का,

जहाँ इंसानियत की हर दीवार
गिरती है,

कोई मजबूरी, कोई लालच की है
ज़ंजीर,

कोई अपने ही हाथ से अपनों को
गिरवी रखती है,

इज़्ज़त की बोली लगती है भरे
बाज़ारों में,

और हर निगाह बस जिस्म पर ही
टिकती है,

मर्द बनते हैं ग्राहक, देकर दाम
ज़रा सा,

मगर हर ज़मीर की कीमत यहां
चुकती है,

ये कैसा समाज है, कैसी है ये
दुनिया 'राही'

जहाँ हर आँख बस हवस की
प्यास पीती है,

कसूरवार कौन है, ये सवाल
उठाता है दिल,

जब जुल्म सहने वाली ही खुद
जुल्म करती है..🔥
╭─❀🥺⊰╯ 
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 #LoVeAaShiQ_SinGh 😊°
 ⎪⎨➛•ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी°☜⎬⎪   
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Hindi Poem by ज़ख्मी__दिल…सुलगते अल्फ़ाज़ : 111985605
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