शाम की चादर 🌆
धीरे-धीरे ढलता सूरज,
ले आया फिर शाम का सुरज।
सुनहरी किरणें कहती हैं बात,
थक गया दिन, अब लो विश्राम।
हवा चली कुछ नरम सी,
फिज़ा में घुली कोई ग़ज़ल सी।
चिड़ियों का शोर, घर की उड़ान,
समय हुआ अब लौट के जान।
बच्चों की हंसी, बाजार की रौनक,
हर दिल में अब है थोड़ी सी हलचल।
काम के बोझ से अब मिली राहत,
शाम आई लेके सुकून की चाहत।
तारों की बारात होगी जल्द ही,
चाँदनी कहेगी — "अब मैं भी आई।"
रंगीन ये पल, मीठे से ख्वाब,
शाम कहे — "जी लो ये लम्हा जनाब!"