दिल का सफ़र अफ़सर न हुआ
मैं तेरे दफ़्तर में क्लर्क भी न हुआ
बाज़ार से खरीद लाता कुछ किस्मत
अफ़सोस, किस्मत को भी
मेरी किस्मत पर यक़ीन न हुआ
तोड़ लाता चाँद अगर हाथ लंबे होते मेरे
हाथ बढ़ा के देखा, तो चाँद को यक़ीन न हुआ
ग़ुलज़ार की ग़ज़ल कहूँ या फ़ैज़ की ज़ुबां
अपना हाल देख शेर भी शर्मिंदा हुआ
अब और क्या रुलाएगा अवधूत
तू कब ज़िंदा था... जो मौत ना हुआ
_अवधूत सूर्यवंशी