एक स्त्री तुम्हें पूरे दिल से चाह सकती है। तुम्हारे लिए दुआ कर सकती है, तुम्हारा साथ दे सकती है, तुम्हें संबल दे सकती है और फिर भी एक दिन चुपचाप चल सकती है।
ये इसलिए नहीं कि उसका प्रेम खत्म हो गया, बल्कि इसलिए कि उसने अंततः समझ लिया सिर्फ प्रेम काफ़ी नहीं होता, जब हर रोज़ उसे चोट पहुँचती हो या उसे नज़रअंदाज़ किया जाता हो।
वो दरवाज़े बंद होने के बाद रो सकती है, तुम्हें खामोशी में याद कर सकती है और फिर भी तुम्हारी दुनिया के शोर के बजाय अपने दिल की शांति चुन सकती है। ये कठोरता नहीं है ये संयम की ताक़त है।
वो स्त्री जो तुम्हें दिल से प्रेम करने के बाद चुपचाप दूर चली जाती है,वो शायद पहले ही गुज़ारिश कर चुकी होती है, समझा चुकी होती है और बहुत वक़्त तक इंतज़ार कर चुकी होती है।
इसलिए जब वह ख़ामोश हो जाए तो समझो, वो कड़वाहट नहीं है…वो उपचार है। अपने टूटे हुए दिल के
बचे हुए टुकड़ों की हिफ़ाज़त है।