मौन का विज्ञान ✧
मौन का अर्थ केवल बोलना बंद करना नहीं है।
मौन का अर्थ है —
प्रश्न को उठाना, और फिर उसे बिना किसी मानसिक श्रम के छोड़ देना।
जैसे बीज को मिट्टी में रखकर किसान उसे खोद-खोद कर नहीं देखता,
वैसे ही प्रश्न को भीतर की भूमि में रख दो।
तब तुम्हारा भीतर दो रूपों में काम करता है —
पुरुष: जो प्रश्न करता है, गति करता है, आक्रमण करता है।
स्त्री: जो प्रश्न को गर्भ में रखती है, पोषित करती है, उत्तर को जन्म देती है।
यहाँ मौन स्त्रैण आयाम है।
यही वह जगह है जहाँ उत्तर “तुम” नहीं देते — वह स्वयं तुम्हें मिलता है।
कभी वह उत्तर अभी आता है, कभी महीनों या सालों बाद आता है,
क्योंकि मौन समय से परे है।
जब यह समझ आता है, तब गुरु-शिष्य भी भीतर ही होते हैं,
स्त्री-पुरुष भी भीतर ही होते हैं,
ईश्वर और ब्रह्मांड भी भीतर ही होते हैं —
एक संपूर्ण प्रयासशील ऊर्जा के रूप में।
जैसा ओशो कहते हैं —
जीवन गति और ठहराव का संतुलन है।
मौन जितना गहरा होगा,
सूत्र से समझे
1. प्रश्न — पुरुष की गति है;
उत्तर — स्त्री का मौन है।
2. मौन का अर्थ है —
प्रश्न को छोड़ देना, जैसे बीज को मिट्टी में छोड़ दिया जाता है।
3. उत्तर खोजने से नहीं आते;
मौन में वे स्वयं जन्म लेते हैं।
4. पुरुष प्रहार करता है,
स्त्री थाम लेती है —
और इसी आलिंगन से ज्ञान जन्मता है।
5. मौन जितना गहरा,
रहस्य उतना पूर्ण, उत्तर उतना सटीक।
6. भीतर का गुरु — पुरुष है;
भीतर का शिष्य — स्त्री है।
दोनों जब मिलते हैं, तब सत्य प्रकट होता है।
7. जीवन गति और ठहराव का संतुलन है;
एक बिना दूसरे के — अधूरा है।
तुम्हारी खोज उतनी पूर्ण और रहस्यमयी होगी
अज्ञात अज्ञानी