"पत्नी का वैराग्य"
पत्नी के जीवन में प्रेम का केंद्र उसका पति ही होता है।
वह चाहे कितनी भी कठिनाइयों से गुज़रे, चाहे कितने ही आकर्षण उसके जीवन के रास्ते में आएँ,
लेकिन उसका मन, उसका ध्यान और उसका स्नेह
सिर्फ़ और सिर्फ़ पति तक ही सीमित रहता है।
पति के अतिरिक्त किसी और पुरुष की ओर न दृष्टि जाती है, न ही विचार।
यही एक पत्नी का सच्चा वैराग्य है –
कि संसार चाहे कितनी भी चमक दिखाए,
उसकी नज़र में उसका संसार केवल उसका पति होता है।
वैराग्य केवल तपस्वियों का गुण नहीं,
बल्कि पत्नी का यह मौन व्रत भी एक तपस्या है।
यह तपस्या प्रेम की, निष्ठा की और आत्मसंयम की है,
जहाँ पत्नी अपने हृदय के हर भाव को पति के चरणों में अर्पित कर देती है।