अवसर और जीवन
अवसर रोज आते हैं, पर हम देख नहीं पाते,
जीवन सब पाते हैं, पर क्यों सही से जी नहीं पाते।
जैसे सुबह का उजाला दरवाज़े पर दस्तक देता है,
पर सोई आँखें उसे बस सपनों में ही देख लेती हैं।
क्षणों का यह मेला हर ओर बिखरा है,
पर हम तो व्यस्तता की चादर में लिपटे हैं।
कभी भविष्य की धुंध, कभी अतीत की याद,
आज की मिठास खो जाती है उन बिखरे संवाद।
सूरज जब भी उगता है, एक संकेत लाता है,
“जागो, हे मानव, नया अवसर बुलाता है।”
पंछियों की चहचहाहट, फूलों की महक,
हर सांस कहती है—“जीवन को मत कर संकुचित।”
पर हम भागते हैं छाया के पीछे,
मृगतृष्णा में खोकर सच्चाई को भूल जाते हैं।
अवसर सामने खड़ा मुस्कराता है,
पर हम उसकी आँखों में झाँकने से कतराते हैं।
जीवन तो एक नदी है—
अनवरत, अनंत, अविरल।
पर हम, तट पर बैठे,
बस उसकी धारा को देखते रहते हैं।
कभी कहते—“कल पार करेंगे”,
कभी कहते—“अभी समय नहीं।”
और धीरे-धीरे वही अवसर
पानी की बूंदों सा हाथ से फिसल जाता है।
सपनों की गठरी सबके पास होती है,
पर उसे खोलने का साहस कम ही कोई कर पाता है।
क्योंकि हर सपना जोखिम माँगता है,
और हम सुविधा की नींद में सोए रहते हैं।
हम भूल जाते हैं—
अवसर किसी एक को नहीं बख्शता,
वो सबके दरवाज़े खटखटाता है।
फर्क इतना है—
कोई दरवाज़ा खोल देता है,
और कोई बहाने बनाकर सोता रह जाता है।
जीवन का संगीत बजता रहता है,
हर पल सुरों से भरपूर।
पर हम शोर में उलझकर
उस मधुर धुन को सुन नहीं पाते।
कभी सोचते हैं—“यदि धन होगा तो सुख मिलेगा।”
कभी कहते हैं—“यदि समय होगा तो जी पाएँगे।”
पर सत्य यह है—
सुख उसी पल में है,
जिसे तुम अभी जी रहे हो।
पत्तों की सरसराहट भी अवसर है,
यदि तुम उसे सुन सको।
बारिश की बूँदें भी जीवन का गीत हैं,
यदि तुम उन्हें महसूस कर सको।
मुस्कान किसी अजनबी की भी एक अवसर है,
यदि तुम उसे हृदय में उतार सको।
जीवन छोटा नहीं,
पर सीमित है।
समय नदी की तरह बहता है,
और अवसर लहरों की तरह आते हैं।
तुम्हें तय करना है—
क्या तुम किनारे बैठकर देखते रहोगे,
या कश्ती बनाकर उन लहरों पर सवार हो जाओगे।
अवसर, तुम्हारे कदमों में बिखरे फूल हैं,
पर आँखें बंद हों तो सुगंध का लाभ कैसे?
जीवन, तुम्हारे सामने खुला आकाश है,
पर पंख फैलाने का साहस कहाँ से आए?
क्योंकि जीना केवल साँस लेना नहीं,
जीना है—हर क्षण को अपनाना।
जीना है—आसमान की ओर देखना और कहना,
“मैं भी उड़ सकता हूँ।”
जो व्यक्ति अवसर को पहचान लेता है,
वो पत्थर को भी सोना बना देता है।
जो चूक जाता है,
वो हीरों के ढेर पर भी खाली हाथ रह जाता है।
तो हे मानव! अब उठो,
अपने भीतर के भय को त्यागो।
हर सुबह को नयी शुरुआत मानो,
हर साँझ को उपलब्धियों की गवाही।
मत सोचो कि कल आएगा तो कर लेंगे,
क्योंकि कल कभी नहीं आता।
कल हमेशा आज के रूप में आता है,
और आज को जो पहचान लेता है,
वो ही अमर हो जाता है।
जीवन तो एक दीपक है—
तेल सीमित है, बाती छोटी है,
पर यदि सही समय पर जलाया जाए,
तो अंधकार को प्रकाश में बदल देता है।
अवसर रोज आते हैं, पर हम देख नहीं पाते।
जीवन सब पाते हैं, पर क्यों सही से जी नहीं पाते।
उत्तर सरल है—
क्योंकि हमने ठहरना नहीं सीखा।
क्योंकि हमने सुनना नहीं सीखा।
क्योंकि हमने देखना नहीं सीखा।
जिस दिन ठहरकर क्षण को सुन लेंगे,
उस दिन अवसर की दस्तक भी सुनाई देगी।
जिस दिन अतीत और भविष्य का बोझ उतार देंगे,
उस दिन जीवन की मिठास भी मिल जाएगी।
हे मानव! उठो, जागो,
अवसर तुम्हारे दरवाज़े पर खड़ा है।
जीवन तुम्हें पुकार रहा है—
“आओ, अब सच में जी लो।”
डीबी-आर्यमौलिक