सच्चे-झूठे की गाथा
सुना, तुम कल्कि रूप में आओगे,
भक्तों को बचाने आओगे,
सब धर्मों को फिर से जोड़ोगे,
दुनिया में नया उजाला लाओगे।
पर मैंने देखा सच का दुख,
और झूठों के चेहरे पर सुख।
वो मंदिर जाएँ, फूल चढ़ाएँ,
तुम उनसे क्यों प्रसन्न हो जाते?
उनकी हर इच्छा पूरी कर जाते।
तुम तो सच्चे मन को चाहते हो,
निर्मल भाव से ही प्रसन्न हो जाते हो।
यहाँ तो सब उल्टा हुआ है,
झूठा मौज में, सच्चा दुख से रोया है।
सच्चे पर लगते इल्ज़ाम,
तुम क्यों नहीं आते, हे राम?
वो मज़ाक बनाते हैं, कहते हैं,
"अपराधी के पास भगवान नहीं रहते।"
सुनो प्रभु, अब लाज तेरी है,
मैंने तो कहा, "मेरे ईश्वर संग मेरे हैं।"
गर न आए, तो मेरा नहीं, तेरा मज़ाक बनेगा,
हमारा क्या, हमारा तो रोज़ अपमान होगा।
हम तो आदी हो गए सुनकर,
पर दुष्ट लोग हो जाएँगे खुश,
बढ़ेगा अत्याचार, होगा तुम्हारा उपहास,
कल्कि! कुछ तो करो,
तुम सह लोगे, पर हमसे न होता बर्दाश्त।
कोई चमत्कार दिखाओ,
उन दुष्टों के होश उड़ाओ।
अब तो आओ प्रभु, अब तो आओ,
सच्चों की लाज बचाओ।
समय-समय पर ट्रेलर दिखाओ,
उन दुष्टों को डराओ,
"मैं आ रहा हूँ, अब तो सुधर जाओ।"
मेरे साथ!