सफेद चादर के भीतर काले सपने (अगरिया)
सूरज का तीर उतरता है
उनकी फटी हथेलियों पर,
नमक की सुईयाँ
पैरों के तलवों को चुभती हैं
फिर भी वे मुस्कराते हैं
जैसे धरती के कंधों पर
खड़ा हो कोई आसमान।
रेगिस्तान का यह उजला समंदर
उनका घर भी है, कैद भी।
दिनभर की तपन में
वे पानी को नमक बनाते हैं
और अपने ही पसीने को
आशा में गूँधते हैं।
उनके बच्चे
सफेद कणों से खेलते हैं
जिनमें मिठास नहीं
बस मेहनत की चुभन है।
माँ के होंठों पर दरारें हैं
बाप की आँखों में धूप के धब्बे।
फिर भी
शाम ढलते ही
वे आकाश के तारों को देखते हैं
जैसे कोई गुप्त गीत सुनते हों
जिसमें कहा गया हो —
"तुम्हारा श्रम ही प्रकाश है
और यह नमक
तुम्हारे आँसुओं से
पवित्र हुआ है।”
डीबी-आर्यमौलिक