मैं और मेरे अह्सास
हँस के गले मिलते हैं
सभी गिले शिकवे भूलाकर हँस के गले मिलते हैं l
समंदर किनारे हाथों में हाथ डालकर फिरते हैं ll
प्यार में बुने हुए रिश्तों में फ़िर मिठास आने से l
दिल के गुलशन में खुशीयों के गुल खिलते हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह