आऊं जो तेरे रूबरू मैं अपनी पहचान पा लेती हूं।
तू मेरे हर रूप से वाकिफ है।
जो दुनिया से परे है वह तू देख पता है।
एक तू ही तो है जो मेरा हर रंग समझ पाता है।
तेरी सूरत तो नहीं देखी पर तू कुछ मुझसा ही लगता है।
मैं जिस हाल में आऊं तेरे सामने तू मुझे वैसा ही दिखता है।
यह तारीफ है तेरी कुछ मेरी बुराई है।
तू दर्पण है तेरी फितरत है औरो सा ढलना।
मैं तो इंसान हूं खुद को तुझसा कर नहीं पाती।
बस यही एक हुनर मैं तेरा हासिल कर नहीं पाती।