समय अभी तो महल रचेगा
महल बनाकर ध्वस्त करेगा,
जीवन में आग लगाकर
उसे हवा दे तीक्ष्ण करेगा।
सब नदियों में बहा करेगा
तीर्थ बनाकर पवित्र बनेगा,
विशाल समुद्र में थमा रहेगा
सबके हाथों बँटा करेगा।
टूट- फूट में रमा करेगा
जीवन से बहा करेगा,
सूखी लकड़ी वह जलाकर
स्वयं सदा गरम रहेगा।
किसी युद्ध से नहीं डरेगा
भू-जीवन पर चला करेगा,
महल बनाकर राज करेगा
ध्वस्त हुआ तो नया रचेगा।
*** महेश रौतेला