ये इश्क़ के रास्ते मुझे नहीं खिंचते,
मैं अपने रास्ते ख़ुद बनाती हूँ।
ख़्वाबों को किसी क़ैद में रखना मुझे नहीं आता,
मैं टूटे हौसलों को भी उड़ान सिखाती हूँ।
मुझे मंज़िलों का शोर कभी लुभाता नहीं,
मैं ख़ामोशी में भी अपनी आवाज़ पाती हूँ।
जो लिख दे मेरी तक़दीर किसी और के नाम,
ऐसी हर एक क़लम को मैं मिटाती हूँ।
तजुर्बों की आग में जलकर भी शिकायत नहीं,
मैं राख से फिर ख़ुद को सजाती हूँ।
मुझे भीड़ का हिस्सा बनना मंज़ूर नहीं,
मैं अलग चलकर ही अपनी पहचान बनाती हूँ।