घर Quotes in Hindi, Gujarati, Marathi and English | Matrubharti

घर Quotes, often spoken by influential individuals or derived from literature, can spark motivation and encourage people to take action. Whether it's facing challenges or overcoming obstacles, reading or hearing a powerful घर quote can lift spirits and rekindle determination. घर Quotes distill complex ideas or experiences into short, memorable phrases. They carry timeless wisdom that often helps people navigate life situations, offering clarity and insight in just a few words.

घर bites

#घर -परिवार

सब्र रखे, बुरा होगा, तो अच्छा भी होगा

#घर पे रहो सुरक्षित रहो

#घर #प्रतिभाउवाच #लेखिका प्रतिभा द्विवेदी उर्फ मुस्कान© सागर मध्यप्रदेश की पूर्णता स्वरचित मौलिक व प्रमाणिक पंक्तियाँ

#Moral Stories
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#दीवार पर टंगी #पिता की #तस्वीर______
आज पिता को गुजरे पूरा एक महीना हो चुका है।चलो सब #कार्य #अच्छी तरह से #निपट चुका है। अब मैं भी, पत्नी को साथ लेकर, कहीं #तीर्थाटन के लिए जाने की सोच रहा हूं। चलो एक दायित्व पूर्ण हुआ, #दायित्व ही तो है। मैं मन ही मन अपनी #काबिलियत पर खुश हूं, एक जिम्मेदारी को बहुत ही #जिम्मेदारी से निभाया। कहीं मन ही मन बहुत खुश होता हूं, जब कोई मेरी प्रशंसा करते हैं, स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता हूं, अपने #अहम में डूबा हुआ। कोई रिश्तेदार, बहन, भाई कुछ कहते, कभी याद करते, या रोते हैं, तो उन्हें मैं बड़ी सफाई से गीता का #ज्ञान देकर चुप करा देता हूं। सही ही तो है, सबको एक दिन जाना है, इसमें नया क्या है?? सब मेहमान भी विदा हो चुके हैं। दिनचर्या #पटरी पर #लौट रही है। फिर भी बहुत #व्यस्त चल रहा है। पिता की कुछ जमापूंजी, पैसे, गहने, कागजात और भी जो कुछ है, मेरा ही तो होगा। इस से आगे कभी सोच ही नहीं पाया। लेकिन इस व्यस्तता के बाद, अब कुछ वीरानगी, कमी सी महसूस होने लगी है कई बार।खासतौर पर ऑफिस से लौटते वक्त,जैसे पापा की आंखे बस मेरा ही इंतजार कर रही होती थी,कई बार मैं #झुंझला भी जाता था, क्यों करते रहते हो मेरा इंतजार?? पापा कहते जब नहीं रहूंगा तब समझोगे। #सही कहा था। सब की अपनी दिनचर्या है, बच्चे अपनी पढ़ाई में व्यस्त, पत्नी अपने घर के काम, बाहर, सहेलियों, मंदिर आदि में। अब सब #याद आ रहा है। जब मैं ऑफिस या बाहर जाता तो हमेशा पिता के #पैर छूकर ही जाता था। पिता भी हमेशा सिर पर हाथ रख #आशीर्वाद देते थे। कुछ खाया कि नहीं, जब कि उनको पता होता था, कि मैं नाश्ता कर चुका हूं फिर भी उनकी अपनी तसल्ली के लिए। फिर ये कहना,बेटा जब भी घर से निकलो, खाकर निकलो। #घर #खीर तो बाहर खीर। शाम को दीवान पर बैठे मेरा इंतजार करना, मेरे आने पर ही सबके साथ पानी तथा चाय का पीते हुए पूरे दिन की बातें सुनकर अकेले घूमने निकल जाना।
#लेकिन इन कुछ दिनों से, #अपने #अंदर मैं अपने #पिता को #पुनः #जीवित होते देख रहा हूं। उसी दीवान पर बच्चों के बाहर जाते समय वैसे ही टोकना, आते ही सारी बातें समझाना, रात को सोते समय बेटे की छाती पर रखी किताब को हटाकर धीरे से चादर को #ओढ़ा देना। हां, सच में तो #मैं अब पिता बनता जा रहा हूं। हां पापा, मैं आपको बहुत #मिस कर रहा हूं। और अब जब भी मैं दीवार पर टंगी अपने पिता की तस्वीर देखता हूं, तो ना जाने क्यूं #फिर से छोटा #बच्चा बन जाता हूं। और नहीं भूलता, उनको #प्रणाम करना। लगता है जैसे कह रहे हों, कुछ खाया कि नहीं। घर खीर तो बाहर खीर। पत्नी पूछती है,क्या हुआ?? उसे क्या #समझाऊं ये मेरे और पापा के #बीच की बात है। शायद हर बार वो दीवार पर #टंगी #तस्वीर मुझसे ऐसे ही #वार्तालाप करती है, सबकी #नजरों से #इतर

#ओ #मां , तुम #धुरी हो #घर की!
मुझे आज भी याद है चोट लगने पर मां का हलके से फूंक मारना और कहना, बस अभी ठीक हो जाएगा। सच में वैसा मरहम आज तक नहीं बना।
#वेदों में मां को पूज्य, स्तुति योग्य, आव्हान करने योग्य कहा गया है। महर्षि मनु कहते हैं दस उपाध्यायों के बराबर एक आचार्य,सौ आचार्य के बराबर एक पिता और पिता से दस गुना अधिक माता का #महत्व होता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कहते हैं, जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थात जननी(मां) और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होते हैं। इस संसार में 3 उत्तम शिक्षक अर्थात माता, पिता, और गुरु हों, तभी मनुष्य सही अर्थ में मानव बनता है
या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता।।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः।।
मां को #कलयुग में #अवतार कह सकते हैं। मां कभी मरती नहीं, उसने तो अपना अस्तित्व (यौवन) संतान के लिए अर्पित कर दिया, संतान के शरीर का निर्माण (सृजन) किया। आज भौतिक चकाचौंध, शिक्षा, कैरियर, नौकरी आदि ने विश्व को सब कुछ दिया, बदले में मां को छीन लिया। किसी भी घर में स्त्री पत्नी, नारी, बहू, बेटी, बहन,भाभी, सास, मिल जाएगी, परंतु मां को ढूंढ पाना कठिन हो गया।आज स्वयं स्त्री अपने व्यक्तित्व निर्माण में कहीं खो सी गई है।
#नारी देह का नाम है।
#स्त्री संकल्पशील पत्नी है।
#मां किसी शरीर का नाम नहीं, अपितु
मां- #पोषणकर्ता की अवधारणा है।
#अहसास है जिम्मेदारी का।
मां- आत्मीयता का भावनात्मक भाव है। मां #अभिव्यक्ति है #निश्छल प्रेम, दया, सेवा, ममता की। मां शब्द अपने आप में एक अनूठा और भावनात्मक एहसास है। यह एहसास है सृजन का, नवनिर्माण का। स्त्री कितनी भी आधुनिक हो लेकिन मां बनने के गौरव से वह वंचित नहीं होना चाहती।
जब तक स्त्री का शरीर दिखाई देगा, मां दिखाई नहीं देगी। उसके बनाए खाने में प्यार, जीवन के संदेश महसूस नहीं होंगे। महरी या बाहर के खाने में कोई संदेश महसूस नहीं होता। ऐसा खाना आपको #स्पंदित , आनंदित ही नहीं करेगा। क्योंकि उनमें भावनाओं का अभाव होता है। कहते हैं ना जैसा खाओ अन्न, वैसा होगा मन। मां के हाथ का खाना भक्तिभाव, निर्मलता, स्वास्थ के लिए हितकर होता है, उसमें होता है मां का प्यार, दुलार, मातृ भाव, आध्यात्मिक मार्ग भी प्रशस्त करता है। भाईबहिनों को एक करने की शक्ति है मातृ प्रेम।
केवल पशुवत जन्म देने भर से कोई मां नहीं हो सकती। आजकल ममता/ कैरियर, अर्थ लोभ के द्वंद्व के बीच फंसी मां की स्थति डांवाडोल होती रहती है। ऐसे समय में माताएं अपना #धैर्य बनाएं। बच्चे देश का भविष्य हैं,उनकी जिम्मेदारी माताओं पर ही है।
इंसान वैसे ही होते हैं,जैसा #मांएं उन्हें बनाती हैं। #भरत को #निडर भरत बनाने में शकुन्तला जैसी मां का ही हाथ था,जो शेर के दांत भी गिन लेता था। हमेशा मां परवरिश को लेकर कहा गया होगा, और किसी को नहीं। आप #भाग्यशाली हैं जो, प्रभु ने इस महत्वपूर्ण #दायित्व के लिए आपको चुना है। मां बनना एक चुनौती से कम नहीं है। एक गरिमा, गौरवपूर्ण शब्द है मां। इस दायित्व का निर्वहन भलीभांति करने से ही देशहित, समाजहित संभव होगा।