पुस्तक समीक्षा
समीक्ष्य उपन्यास : *बड़ी माँ*
उपन्यासकार : *किशोर शर्मा 'सारस्वत'*
प्रकाशक : *के.वी.एम. प्रकाशन, कजियाना (पिंजौर)*
पृष्ठ : *242*
मूल्य : *425*
रचना संसार : *7 उपन्यास (942 पृष्ठीय उपन्यास- 'जीवन एक संघर्ष' भी), 2 कहानी-संग्रह सहित हिन्दी व अंग्रेजी में 17 पुस्तकें*
शिक्षा : *लोक प्रशासन में स्नातकोत्तर, ऑफिस ऑर्गनाइजेशन एंड प्रोसीजर्स का स्नातकोत्तर डिप्लोमा, औद्योगिक संबंध और कार्मिक प्रबंधन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा*
सम्प्रति : *सेवानिवृत्त सलाहकार, राज्य सूचना आयोग, हरियाणा, अब स्वतन्त्र लेखन*
निवासी : *पंचकूला (हरियाणा)*
*भावनाओं व संभावनाओं का रोचक गठजोड़ है उपन्यास: 'बड़ी माँ'*
वृहद उपन्यासों को लिखने में सिद्धहस्त, भावनाओं के कुशल चितेरे व कल्पनाओं के धनी श्री किशोर शर्मा 'सारस्वत' का यह उपन्यास वस्तुत: द्वितीय संस्करण है जिसमें नदी किनारे रहने वाली गरीब बस्ती की निस्संतान राम आसरी एक 3-4 वर्षीय बच्चे के नदी में बहकर अटके मरणासन्न मुन्ना के जीवन को बचाने व अगले कुछ वर्षों में जीवन में आई विपत्तियों को दूर कर सँवारने के अनोखे घटनाक्रम का विवरण है।
उपन्यास, राम आसरी के शराबी व नीयत के खोटे पति तथा राम आसरी के ही भाई द्वारा मुन्ना को गुंडों के हाथों चार हजार में सौदा करने, उसको भिक्षावृत्ति के धंधे से बचाने वाली राम आसरी के विकट परिस्थितियों में संघर्षों की गाथा अंतत: अपने मरने से पहले नाटकीय घटनाक्रम में उसके माँ-बाप से मिलने की रोचक कहानी भी है।
उपन्यास के कई संवाद भावुक करने वाले बन पड़े हैं, घटनाएँ मार्मिक किन्तु जिज्ञासा जगाने वाली हैं तथा उपन्यास का विस्तार प्राकृतिक सौंदर्य के दर्शन के साथ उपन्यासकार का लोहा मनवाने में सक्षम है। बच्चे को विकृत मानसिकता के गुंडों को बेचने वाले भाई व पति को ईश्वर का न्याय हाथों-हाथ मिल जाने की घटनाएँ पाठकों को रोमांचित करती हैं तो बच्चों को भिक्षावृत्ति में धकेलने वाले गुंडों से राम आसरी का संघर्ष भी पठनीय बन पड़ा है।
उपन्यास में एक ओर मुन्ना के नदी में बह जाने के बाद उसके माँ-बाप की मनोदशा का कारुणिक चित्रण है तो दूसरी ओर राम आसरी का गुंडों से मुन्ना को बचाने का संघर्ष पाठकों के माथे पर पसीने की बूँदें ले आता है। साथ ही राम आसरी के शराबी पति की रेल की पटरियों से दोनों पैर कट जाने से मृत्यु तथा राम आसरी के कपटी भाई की शक के आधार पर गुंडों द्वारा पिटाई व मौत का वर्णन ठंडी फुहारों का आभास दिलाता है।
राम आसरी का गुंडों व बाद में परिस्थितियों से अथक संघर्षों के पश्चात मुन्ना का 6-7 वर्षों बाद अपनी माँ से पुनर्मिलन का दृश्य नयनाभिराम बन पड़ा है।
इसकी एक झलक देखिए:
*मुन्ना ने ज्योंही उसे अपनी ओर निहारते देखा, उसकी नज़र माँ के चेहरे पर पड़ी। उसे लगा कि यह कहीं उसकी आँखों का भ्रम तो नहीं है। उसने अपने दोनों हाथों से अपनी आँखें मसलकर साफ कीं। माँ की सूरत तो ज्यों की त्यों थी। मन में ऐसा तूफान उठा मानो छाती फाड़कर बाहर निकल जाएगा। वह बिजली की सी तेज गति से उसकी ओर भागता हुआ चिल्लाया, 'माँ..!'* (पृष्ठ 230)
इधर मुन्ना को अपनी असल माँ मिलीं और उधर जिसके सान्निध्य व स्नेह में रह कर मुन्ना ने बचपन के 7-8 वर्ष गुजारे थे, की दुनिया से विदाई हो रही थी:
*'बड़ी माँ, आप मुझे छोड़कर क्यों चली गई? आपके वायदे तो झूठे निकले। आप तो कहती थी कि तुझे एक दिन बड़ा और महान आदमी बनाऊँगी। परन्तु आज आप स्वयं ही मेरी जगह बड़ी और महान माँ बनकर चली गई हो। बड़ी माँ! आप महान हो! ...आप महान हो!'* (पृष्ठ 234)
'बड़ी माँ' के रूप में किशोर शर्मा साहब का एक और अविस्मरणीय उपन्यास, जो प्रेरक है, जिसमें त्याग और स्नेह की उदात्त भावनाएँ प्रस्फुटित होकर पाठकों की आँखों को नम कर देती हैं। उपन्यास अपने कथ्य, शिल्प, संवाद, पात्रों के चरित्र-चित्रण, वातावरण व उद्देश्य में खरे सोने की भाँति है।
पुस्तक की छपाई तथा बाइन्डिंग भी उत्कृष्ट है।
इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर उपन्यासकार को बधाई!
*समीक्षक : डाॅ. अखिलेश पालरिया,
अजमेर*