जब जीवन में श्रृंगार नही
यहाँ कही मधुमास नही
पल-पल साँसों के पत्ते झड़ते है
ना जीते है ना मरते है
हर पल ये उलझन रहती है
क्यों जीना है जब प्राण नही
आशा की एक किरण आकर
कानों में कुछ कह जाती है
मन पुलकित सा हो जाता है
जीने की राह दिखाती है
फिर जाग उठा साहस सा है
मन में न कही अब भार सा है
उठ मानव तू अब कदम बढ़ा
सूरज सिर पर चढ़ आया है
जीवन जीने का अब तूने
एक नया लक्ष्य सा पाया है।।
मीरा सिंह