कल देर से फिर,
काली रात से बात हो गई
है कितना अंधेरा उसके पास,
इस बात पर बात हो गई
गिना कर अपना अंधेरा,
चांद तारो के साथ वो मायूस हो गई
देखकर उसको मायूस ऐसे,
मैं भी अपने पन्ने पलटने पर मजबूर हो गई
पन्ने पूरे खुलते,
इस से पहले ही रात को घबराहट हो गई
बिना चांद तारो के ,
इतना अंधेरा देख रात भी हैरान हो गई
उसके इस सवाल पर,
मै मुस्कुरा कर रह गई
रहती हूं इस तरह कैसे,
रात के सवाल पर मैं मौन हो गई
जवाब तो शायद यही था,
कि बस इस अंधेरे की आदत मुझे हो गई