“कुछ तन्हाइयाँ हमसफ़र बन जाती हैं…”
जब लोग आँखें चुराते हैं, हम ख़ामोशियाँ ओढ़ लेते हैं।
और जब जज़्बात कोई न समझे — हम उन्हें शायरी बना देते हैं।
इस कविता में धीर सिर्फ एक नाम नहीं,
वो हर वो आत्मा है जिसने अकेलेपन से मोहब्बत सीखी है,
जिसने अपनी टूटन को शब्दों में पिरोया है,
और जिसे अब किसी के आने या जाने का मलाल नहीं रहा।
कभी-कभी सन्नाटा सबसे खूबसूरत संगीत होता है,
बस उसे महसूस करने की हिम्मत चाहिए।
“ज़िन्दगी अब तू साज़ है…”
हर दर्द को सुर बनाकर जीना भी एक हुनर है — और यही हुनर है धीर के शब्दों में।
📖 अगर कभी आपकी आंखों ने बिना आंसुओं के रोया है — तो ये पोस्ट आपके लिए है।
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