Hindi Quote in Book-Review by Manish Patel

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"मेरा नाम सुशीला है।


मुझे पापा-मम्मी की यादें अब धुंधली सी लगती हैं।
पर एक चीज़ जो कभी धुंधली नहीं हुई, वो है मेरा सवाल —
क्या मैं इस घर की हूं?"

"जब पहली बार मानवी दीदी को राखी बांधते देखा, और सब उनके लिए गिफ्ट ले कर आए…
तो मैं कोने में बैठ कर सोचती रही –
मेरे लिए कोई क्यों नहीं लाया?"

"पर मैं ये कभी नहीं जानती थी कि बड़े पापा ने मेरे लिए वह गुलाबी कुर्ता खुद से सिलवाया था।
बड़ी मम्मी ने जो खीर बनाई थी, उसमें सबसे ज़्यादा ड्रायफ्रूट मेरे कटोरे में थे।
पर मैंने वो सब नहीं देखा... मैंने सिर्फ दीदी की चूड़ियों की खनक सुनी।
क्योंकि तब मुझे लगता था, दीदी सबकी प्यारी हैं।
और मैं... बस रह गई हूं।"

मेरी जुबानी मेरी कहानी रक्षाबंधन

मुझे नहीं पता कि जब लोग कहते हैं "घर", तो वो क्या सोचते हैं। पर मेरे लिए "घर" कभी एक छत नहीं रहा... एक एहसास रहा है। कभी ममता की गोद, कभी भाई की उंगली, कभी दादी की लोरी... और कभी कभी... मानवी दीदी की वो चुप मुस्कान, जो मुझे अब जाकर समझ आती है।

मेरा नाम सुशीला है। हाँ, वही सुशीला, जो सबके लिए शायद थोड़ी जिद्दी थी, कभी समझ ना आने वाली... और अक्सर गलतफहमियों की गिरफ्त में रहने वाली। लेकिन क्या आप जानना चाहेंगे कि मेरी गलतफहमियाँ क्या थीं?

मैं पाँच साल की थी जब माँ-पापा एक एक्सीडेंट में हमें छोड़कर चले गए। उस दिन मुझे कुछ ठीक-ठीक याद नहीं, बस इतना कि कोई सफेद चादर में लिपटी दो देहें थीं... और मैं चीख रही थी। कुछ दिनों तक सब धुंधला था। मैं बात नहीं करती थी। बस दीवार की ओर देखती रहती।

फिर एक दिन, मैं किसी और घर में थी। वहाँ एक औरत ने मुझे गोद में लिया। उसका आँचल बहुत गरम था। और उस दिन पहली बार किसी ने मेरे बालों में हाथ फेरकर कहा, "अब से तू हमारी बिटिया है।"

वो मेरी बड़ी मम्मी थीं — सरला मम्मी। और उनके साथ मेरे बड़े पापा थे — दिनेश चाचा, जो अब मेरे पापा बन गए थे।

वहाँ पहले से तीन बच्चे थे — दो बेटे: विनीत भैया और आरव, और एक बेटी: मानवी।

और यही से शुरू होती है मेरी कहानी...


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"जलन" की शुरुआत:

शुरू में सब अच्छा था। मम्मी हर सुबह मेरे बाल बनातीं, टिफिन में वो चीज़ें रखतीं जो मुझे पसंद थीं। पर जैसे-जैसे मैं बड़ी हुई, मुझे लगने लगा कि... मानवी दीदी को ज़्यादा तवज्जो मिलती है।

उनके लिए नए कपड़े आते थे, उनके रिज़ल्ट्स पर सब ताली बजाते थे, और हर बार जब वो रक्षाबंधन पर भाइयों को राखी बांधतीं, तो सब कहते — "देखो, कितनी समझदार हो गई है हमारी मानवी!"

और मुझे लगता... क्या मैं नहीं हूँ? क्या मैं कुछ भी नहीं?

लेकिन शायद मैं जानबूझ कर देखती ही नहीं थी कि दीदी मेरे लिए अपनी चीज़ें छोड़ देती थीं। मेरी पसंद की किताबें पहले वो खुद पढ़कर मुझे देतीं। जब मैं बीमार होती, तो रात भर पास बैठतीं।

पर मैं क्या करती?

मैं तो सिर्फ वही देखती जो मेरे अंदर की कमी ने मुझे दिखाया।


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दादी और मेरी दुनिया:

मेरे लिए सबसे बड़ा सहारा थीं — मेरी दादी। वो मेरी माँ के ससुराल आई थीं, लेकिन मुझे लगता था जैसे वो मेरी माँ की आत्मा ही थीं। जब सब सो जाते, वो मुझे अपने पास बुला लेतीं, और कहानियाँ सुनातीं — माँ की, पापा की, मेरी बचपन की।

लेकिन फिर भी... कभी-कभी मैं दादी से भी रूठ जाती। जब वो मानवी दीदी की तारीफ़ करतीं, तो मुझे लगता, "सबको वही पसंद है।"

पर सच तो ये था कि... दादी सबसे ज़्यादा अगर किसी से जुड़ी थीं, तो वो मैं थी।


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रक्षाबंधन की एक सुबह:

आज जब मैं ये लिख रही हूँ, रक्षाबंधन की सुबह है। मैं अब 20 साल की हूँ। और आज पहली बार... मैंने मानवी दीदी को राखी बाँधी है। नहीं, भाइयों को नहीं... दीदी को।

क्योंकि आज मैं समझ पाई हूँ कि माँ-पापा के जाने के बाद, जो मुझे सबसे ज़्यादा बाँधकर रखे रही, वो कोई डोर नहीं... वही थीं।

आज दादी ने कहा, "सुशीला, तू बड़ी हो गई है।" और मेरी आँखों में आँसू थे।


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मैंने जो नहीं देखा था...

मुझे लगता था, मैं अकेली हूँ।

पर सच तो ये था कि मम्मी-पापा के जाने के बाद, एक और लड़की थी, जो रोज़ रात को रोती थी — मानवी दीदी।

एक और औरत थी, जो मुझे माँ बनकर चाहती थी, लेकिन हर बार डरती थी कि मैं उसे असली माँ न मान लूँ — मेरी बड़ी मम्मी।

एक पिता था, जो मेरी हर स्कूल फीस भरते समय छुपकर आँसू पोंछता था — मेरे बड़े पापा।

और दादी... जो खुद के पोते-पोतियों में मुझमें मेरी माँ का चेहरा देखती थीं।


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अब मैं क्या चाहती हूँ?

अब मैं हर रक्षाबंधन पर सबको बाँधूंगी — प्यार की डोर से। अब मैं जलन नहीं, अपनापन देखूंगी। अब मैं छोटी बहन नहीं, बड़ी सोच की बहन बनूंगी।

और यही है मेरी कहानी।

मैं सुशीला हूँ। और ये मेरी ज़ुबानी है।

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद जो भी मेरी कहानी पड़ रहा है यह रियल स्टोरी है मेरी दोस्त सुशीला की वैसे रक्षाबंधन और यह रक्षाबंधन की कहानी आपके लिए आप सभी को रक्षाबंधन की ढेर सारी शुभकामनाएं अगर आप ऐसे ही रियल स्टोरी और जानना चाहते हो तो मैं फॉलो जरूर करें हम ऐसे ही रियल स्टोरी डालते रहेंगे अगर आपको स्टोरी अच्छी लगी हो तो हमें कमेंट में जरूर बताएं

Hindi Book-Review by Manish Patel : 111990856
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