*🌧️ “पापा की चप्पल” — एक सच्ची सी कहानी*
बरसात का मौसम था।
लड़का कॉलेज से घर लौटा — पूरा भीगा हुआ, गुस्से में भरा हुआ।
“पापा! कितनी बार कहा था एक छतरी दिला दो, हर बार भीग जाता हूँ!”
पापा कुछ नहीं बोले…
बस मुस्कराए और बोले,
“ठीक है बेटा, कल चलते हैं।”
अगले दिन जब लड़का तैयार हो रहा था कॉलेज के लिए,
तो बाहर पापा पहले से खड़े थे —
नंगे पाँव… हाथ में एक नई छतरी लिए।
लड़के ने चौंककर पूछा,
“आपकी चप्पल कहाँ है?”
पापा बोले,
“तू भीगता है तो बुखार हो जाता है…
मैं भीगता हूँ तो आदत है।”
लड़का कुछ नहीं कह पाया।
उस दिन छतरी से ज़्यादा
पापा के नंगे पाँव उसे भीगते दिखे।
⸻———————————
- Gaurav Pathak