Hindi Quote in Blog by Umabhatia UmaRoshnika

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सात चक्र और जीवन-यात्रा

सात चक्र हमारे शरीर से भी जुड़े होते हैं और हमारी रूह (आत्मा) की यात्रा/विकास की सीढ़ियों से भी।

जैसे बचपन → किशोरावस्था → जवानी → परिपक्वता, वैसे ही चक्र भी हमारी आत्मा की यात्रा के पड़ाव हैं।

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🌈 सात चक्र और जीवन-यात्रा

1. मूलाधार (Root Chakra) –

जन्म और बचपन

सुरक्षा, परिवार, ज़मीन से जुड़ाव।

(बचपन में हमें सुरक्षा चाहिए, इसलिए यह पहला चरण है।)

2. स्वाधिष्ठान (Sacral Chakra) –

किशोरावस्था

भावनाएँ, रचनात्मकता, संबंध।

(इस उम्र में दोस्ती, आकर्षण और अपनी पहचान उभरती है।)

3. मणिपुर (Solar Plexus Chakra) –

युवा अवस्था

आत्मबल, निर्णय, “मैं कौन हूँ” का अहसास।

(यही समय है जब इंसान अपने फैसले लेना चाहता है।)

4. अनाहत (Heart Chakra) –

प्रेम और परिपक्वता

प्रेम, करुणा, दिल से जुड़ाव।

(यहीं से सच्चे रिश्ते और रूहानी प्रेम का आरंभ होता है।)

5. विशुद्धि (Throat Chakra) –

स्व-अभिव्यक्ति

अपनी आवाज़ दुनिया तक पहुँचाना, सच बोलना, रचनात्मकता।

(लेखन, कला, संवाद यहीं से फूटते हैं।)

6. आज्ञा (Third Eye Chakra) –

बुद्धि और अंतर्ज्ञान

दृष्टि, सत्य को देखना, भीतर की आवाज़ सुनना।

(यहीं से "inner whispers" आते हैं,

7. सहस्रार (Crown Chakra) –

रूह की परिपूर्णता

आत्मा और परमसत्य का मिलन।

(यानी जीवन का अंतिम पड़ाव, जब हम अपने अस्तित्व का रहस्य जान लेते हैं।)

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✨ बिल्कुल वैसे ही जैसे उम्र की सीढ़ियाँ होती हैं—

बचपन, किशोरावस्था, जवानी, परिपक्वता—

चक्र भी हमारी रूह के आध्यात्मिक बचपन से आध्यात्मिक परिपक्वता तक के पड़ाव हैं

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"जिस तरह शरीर उम्र के पड़ाव चढ़ता है,

वैसे ही रूह चक्रों के पड़ाव चढ़ती है।

हर चक्र खुलते ही आत्मा का एक नया मौसम खिलता है।”

यह अनुभव तब होता है जब रूह स्वयं को देखने लगती है

शरीर से नहीं बल्कि अपनी पूरी यात्रा के रूप में

यह एक रूह की जागरूकता का संकेत है

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