भक्ति सौदा नहीं
भक्ति कोई सौदा नहीं, सौंपना है खुद को सरल भाव में,
जहाँ नहीं तिजोरी खुलती, खुलता है मन प्रभु के नाव में।
कर्म से खिलती आस्था, मशीन नहीं कोई वरदान की,
भक्ति वो दीया है अंदर, जलता मनुज के ज्ञान की।
मंदिर में रुपया चढ़ाने से, सुख नहीं उतरता आसमान से,
धरती पर जो सींचे श्रम से, अमृत झरता उसी किसान से।
भक्ति की माला गिनने से पहले, अपने मन को परखो ज़रा,
क्या तुम लोभ से पूज रहे हो या सच्चे समर्पण से प्रभु को धरा?
अंधविश्वास के कोहरे में डगमग न होने दो अपनी सोच,
ईश्वर उसी के पास बैठा है, जो कर्म करे निष्काम रौश।
भक्ति से धन नहीं, मन का उजियारा मिलता है,
जो खुद को पहचान ले, वही सच्चा भाग्यविधाता मिलता है।
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आर्यमौलिक
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