Hindi Quote in Poem by NR Omprakash Saini

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“अब कुछ खोने को शेष नहीं”
(— एन. आर. ओंप्रकाश ‘अथक’)

मैं सब कुछ खो चुका हूँ अब,
खोने को कुछ भी शेष नहीं।
सपनों की माला टूट चुकी,
आशाओं का संदेश नहीं।

प्यार गया, विश्वास गया,
रिश्तों का भी आकार गया।
जो साथ चला था उम्रभर,
वह राह में ही लाचार गया।

दोस्ती का दीप बुझा कहाँ,
न जाने कौन हवा ले गई,
और जवानी — जैसे धूप की रेखा,
धीरे-धीरे ढलती रह गई।

अब बस एक निःशब्द किनारा है,
जहाँ लहरें थम जाती हैं।
मन पूछे — “क्या यही अंत है?”
और आँखें नम हो जाती हैं।

पर भीतर कहीं एक ज्वाला है,
जो अब भी बुझने देती नहीं।
थोड़ी-सी रवानी बाकी है,
थोड़ी-सी कहानी बाकी है।

मन कहता —
अब धन नहीं चाहिए,
न मान, न यश, न पहचान चाहिए।
बस एक झलक उस सत्य की,
जो सबमें है — वही ज्ञान चाहिए।

अब कुछ पाने की चाह यही —
ईश्वर को पा लूँ, बस यही।
उसमें ही खो जाऊँ यूँ जैसे,
बूँद सागर में समा जाए।

जो मैंने खोया — लौटे न सही,
पर जो अब मिल जाए वही शाश्वत हो।
खाली हाथ आया था जग में,
अब तृप्त हृदय विदा हो जाऊँ —
यही अंतिम प्रार्थना हो।

Hindi Poem by NR Omprakash Saini : 112004303
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